पहले विपक्ष की भूमिका थी सरकार के हर काम पर नज़र रखना, अच्छे कामों में सहयोग करना एवं गलत कामों का विरोध करना | लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव के बाद से ही विपक्षी पार्टियों ने विपक्ष की परिभाषा ही बदल कर रख दी है |
विपक्षी पार्टियों की हरकतों से तो लगता है कि अब विपक्ष का मतलब सिर्फ विरोध है | सरकार चाहे सही काम करे या गलत दोनों ही स्थिति में बस सरकार का विरोध करना है | जी एस टी बिल भी विपक्ष की इसी गन्दी राजनीति की वजह से रुका हुआ है | राज्य सभा तो लगता है कि अब बंद ही कर देनी चाहिए क्योंकि अब वहां काम के अलावा सब कुछ होता है | विपक्ष द्वारा किये जा रहे बिना बात के हंगामों से जाने कितने जनहित के बिल रुके हुए हैं | संसद के हर सत्र में रोज की कार्रवाही में २ करोड़ का सरकारी धन जो बिना काम के ही खर्च होता है वो अलग | यदि विपक्ष जिम्मेदार भूमिका निभाते हुए राज्य सभा चलने देता तो ये अटके हुए बिल पास हो जाते और न जाने कितने अच्छे परिणाम अब तक आ चुके होते |
नया मुद्दा है मोदी जी की ५ देशों की यात्रा का | अभी तक वो जहाँ जहाँ गए हैं हर जगह भारत के लिए कई अच्छे समझौते हुए, हर जगह के नेताओं एवं मीडिया ने मोदी जी की तारीफ की, अच्छे खासे निवेश की घोषणाएं हुईं | लेकिन विपक्षी पार्टियां एवं उनके समर्थक पत्रकार इन यात्राओं से खुश नहीं हैं | मोदी जी की किसी भी काम के लिए तारीफ की तो वैसे भी मैं इन से उम्मीद नहीं करता लेकिन कम से कम किसी तरह का कोई झूट बोलकर इन यात्राओं को असफल साबित करने का प्रयास तो न करें |
अटल जी ने एक बार संसद में विपक्ष की भूमिका पर भाषण दिया था और बताया था कि विपक्ष का मतलब सिर्फ सरकार का विरोध करना नहीं होता और देश एवं जनता के हित के कार्यों में विपक्ष को आपसी मनमुटाव और राजनीति छोड़कर सरकार को पूरा सहयोग देना चाहिए | लेकिन अटल जी तो सत्तारूढ़ भाजपा के सदस्य हैं तो मौजूदा विपक्ष अपने विरोध के चलते उनकी यह पुरानी सलाह भी नहीं मान रहा |
मौजूदा विपक्ष तो सुधरने से रहा, शायद जनता ही इन्हें अगले चुनाव में सुधार सके |