उत्तर प्रदेश ने देश को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री दिए, सबसे ज्यादा लोकसभा एवं राज्य सभा की सीटें यहाँ हैं, कई बड़े बड़े राष्ट्रीय स्तर के नेता इस प्रदेश ने दिए हैं | बिना उत्तर प्रदेश के आशीर्वाद के केंद्र में सरकार बनाना लगभग असंभव सा ही है | इतना सब होने के बाद भी यह प्रदेश देश का सबसे ज्यादा विकसित और शिक्षित राज्य क्यों नहीं है ? क्यों यहाँ आज भी बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा और रोजगार जैसी बेसिक चीजों का अभाव है ? कौन है इसका जिम्मेदार नेता या स्वयं जनता ?
अब बिहार की बात करते हैं | आज भी बड़े अधिकारियों के चयन की बात करें तो इस प्रदेश के लोगों का नाम बहुत ऊपर आता है | कई आई. ए. एस., आई. पी. एस. अखिकारी इस प्रदेश से निकलते हैं | इस प्रदेश का भी राजनैतिक महत्व काफी रहा है | जे. पी. आंदोलन जिसने तत्कालीन कांग्रेस सरकार को हिलाकर रख दिया था, उसके नायक जयप्रकाश नारायण जी इसी प्रदेश से थे | और भी कई बड़े नामी नेता यहाँ पैदा हुए हैं | आज भी लगभग हर बड़ी पार्टी में इस प्रदेश के कई नेता उच्च पदों पर हैं और पहले भी रहे हैं | फिर भी इस प्रदेश का भी वही हाल है | यहाँ भी आज भी बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा और रोजगार जैसी बेसिक चीजों का अभाव है |
आखिर कौन है जिम्मेदार इस सब के लिए ? हो सकता है हमेशा की तरह ही आज भी कई लोग कहें कि यहाँ के नेता अच्छे नहीं हैं लेकिन क्या सच में इस स्थिति के लिए सिर्फ नेता जिम्मेदार हैं ? आखिर इन दो प्रदेशों के नेताओं में इतनी शक्ति कहा से आई कि वो चुने जाने के बाद ५ साल तक जनता के लिए कोई अच्छा काम नहीं करते और फिर भी अगले चुनावों में उनको टिकट भी मिलती है और वो जीत भी जाते हैं ? मेरी व्यक्तिगत राय में इस सब के लिए सिर्फ और सिर्फ यहाँ की जनता की जातिवादी सोच ही जिम्मेदार है |
उत्तर प्रदेश और बिहार काफी समय से जातिवाद के लिए बदनाम हैं | जब बाकी प्रदेशों के चुनावों की बात होती है तो एक्सपर्ट लोग जनता के विभिन्न मुद्दों के आधार पर चुनाव का विश्लेषण करते हैं परंतु जब बात उत्तर प्रदेश और बिहार के चुनाव की हो तो बात सिर्फ इस मुद्दे पर की जाती है कि कौन सी जाति किस पार्टी के साथ है और किस जाति के कितने वोट हैं | यही इन दोनों प्रदेशों का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है जो कि जनता ने स्वयं चुना है | बिहार विधानसभा के चुनावों में भी जातिवाद की साफ झलक दिखाई दी, लगभग सारी वोटिंग एकतरफा जातिवादी मानसिकता के आधार पर हुई |
जातिवाद के आधार पर चुना हुआ व्यक्ति आखिर काम करेगा ही क्यों जब कि उसे पता है कि वो अगली बार भी जातीय समीकरणों के आधार पर जीत ही जायेगा ? यदि जातिवाद के आधार पर वोट देकर किसी जाति का विकास हो सकता तो आज लगभग सभी बहुसंख्यक जातियां विकसित होतीं क्योंकि उन सभी के हर एक पार्टी में कई बड़े बड़े नेता हैं | लेकिन ऐसा नहीं हुआ इसका साफ मतलब है कि जातिवाद के आधार पर दिया हुआ वोट आपको आपकी बदकिस्मती की ओर ही धकेलता है न कि विकास की ओर | अब हर एक पार्टी को पता है कि चुनाव जीतने के बाद काम करो या न करो लेकिन जातीय समीकरण जरूर सेट किये रहो क्योंकि जीत तो उसी के आधार पर ही होनी है न कि काम के आधार पर | यदि जनता जाति की जगह काम के आधार पर वोट डालती तो क्या सपा, बसपा, आर. जे. डी. जैसी पार्टियाँ अपना अस्तित्व बचा पातीं ? गुंडाराज और भ्रष्टाचार का इन सभी पार्टियों का पुराना इतिहास रहा है लेकिन उस सब के बाद भी आज भी ये पार्टियाँ देश की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान बनाये हुईं हैं |
चुनाव जीतने की चाहत में अब एक एक करके लगभग सभी पार्टियाँ कम या ज्यादा लेकिन जातिवादी मानसिकता का शिकार हो गयीं हैं | लगभग सभी पार्टियों में उम्मीदवार की योग्यता देखी जाये या न देखी जाए लेकिन उसकी जाति जरूर देखि जाती है | क्या होगा इस देश का यदि सारी राजनैतिक पार्टियाँ काम करना बंद कर दें और सिर्फ और सिर्फ जातीय समीकरणों में ही उलझ कर रह जाएं ? कौन जिम्मेदार है इस सब के लिए ?
इन दोनों प्रदेश की जनता को गहरे आत्मचिंतन की आवश्यकता है | आज इनको सोचना ही होगा कि ये अपने आने वाली पीढ़ी के लिए क्या छोड़ कर जाना चाहते हैं | यदि ये चाहते हैं कि इनकी आने वाली पीढ़ी भी बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा और रोजगार जैसी बेसिक चीजों के साधनों के अभाव में जिए तो फिर देते रहे उसी तरह जातिवाद के नाम पर वोट और यदि चाहते हैं कि अब बदलाव आये और आने वाली पीढ़ी विकास की राह पर चले तो फिर सोच में बदलाव की आवश्यकता है | उम्मीदवार की जाति नहीं बल्कि योग्यता के आधार पर वोट दें और अपना और अपनी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुधारें | चुनाव का मुद्दा विकास होना चाहिए न कि जाति | एक बार जनता ने जातिवाद को नकार दिया तो चुनाव जीतने की चाहत में मजबूर होकर एक एक करके सभी राजनैतिक दल भी खुद को बदलेंगे ही |