तारिशि जैन के एक दोस्त फ़राज़ हुसैन के बारे में कुछ समय से भारतीय मीडिया एवं सोशल साइट्स पर कई लोग खबर फैला रहे थे कि उस को आतंकियों ने मुस्लिम होने की वजह से छोड़ दिया था लेकिन उस ने अपनी दोस्त को ऐसे छोड़कर जाने से मना कर दिया और वहीँ आतंकियों द्वारा मार दिया गया | इस खबर के आते ही लोगों ने फ़राज़ को आनन फानन में हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक एवं शांतिदूत बना दिया |
अब बांग्लादेशी मीडिया ने फ़राज़ का राज़ खोलते हुए बताया कि वो खुद भी एक आतंकी था और इस आतंकी हमले में हुई मुठभेड़ में मारा दिया गया | अभी ये तो नहीं पता कि तारिशि को उसने ही मारा था या उस के किसी साथी ने | लेकिन सच यह तो है ही कि तारिशि उसी हमले में मारी गयी जिस को अंजाम देने वाले लोगों में से एक ये उस का दोस्त भी था |
अब सवाल उठता है कि आनन फानन में इस आतंकी हमले के तुरंत बाद इस आतंकी को बिना किसी सच्चाई की जांच के भारतीय मीडिया, पत्रकार एवं कई लोगों ने अमर शांतिदूत, हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक, सच्चा दोस्त आदि न जाने क्या क्या नाम क्यों दे दिए ? जिस भारतीय मीडिया ने अभी तक ठीक से बांग्लादेश में आतंकवादी हमले में हुई ताऋषि जैन की मौत का न तो शोक मनाया और न ही इस आतंकी हमले का ठीक से विरोध किया, उसने इस आतंकी को हिन्दू-मुस्लिम एकता का दूत बनाने में एक पल भी नहीं गंवाया | अब स्वयं बांग्लादेश की मीडिया ने इस कथित शांतिदूत के आतंकी होने का सबूत के साथ राज़ खोला | देश को एक बार फिर गुमराह करने वाला भारतीय मीडिया क्या अब माफ़ी मांगेगा ?