Thursday, November 21, 2024
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श्री कृष्ण भये रघुनाथ

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गोस्वामी तुलसीदास जी प्रभु श्री राम के भक्त होने के साथ साथ भक्ति साहित्य के उच्च कोटि के साहित्यकार एवं कथावाचक व प्रवचनकर्ता भी थे | संतों एवं साहित्यकारों में उनका उच्च स्थान व सम्मान था | मीराबाई भी श्रेष्ठ भक्त व साहित्यकार थीं | उनके पति के स्वर्गवास के बाद उनके ससुराल पक्ष के परिजनों ने उनके प्रति दुर्व्यवहार बहुत अधिक कर दिए तब उन्होंने गोस्वामी जी को पत्र लिखकर अपनी पीड़ा व्यक्त की और उपाय के लिए मार्गदर्शन देने का निवेदन किया | उत्तर व मार्गदर्शन स्वरुप गोस्वामी जी ने यह पंक्तियाँ लिखकर भेजीं |

जाके प्रिय न राम बैदेही, तजिये ताहि |
कोटि बैरी सम, जद्दपि परम सनेही ||

मीराबाई इस का मर्म समझ गयीं और उन्होंने राजमहल व परिजनों का त्याग कर मथुरा प्रस्थान किया और फिर शेष जीवन ब्रजभूमि में ही व्ययतीत किया | उन्होंने मथुरा से गोस्वामी जी को मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद के साथ साथ उन्हें मथुरा आने का निमंत्रण भी दिया | गोस्वामी जी मथुरा गए और ब्रजभूमि की यात्रा की |

गोस्वामी जी ने पाया कि मथुरा सहित सम्पूर्ण ब्रज क्षेत्र में वहां के निवासी श्री कृष्ण भगवान की बाल लीलाओं तथा रासलीला आदि के बहुत दीवाने हैं | वहां के संत व विद्वान भी अपने प्रवचनों में इसी का वर्णन करते हैं | दूर दूर से आने वाले भक्त भी उसी में लीन हो जाते हैं |

उस कालखंड में देश मुगलों के अधीन हो गया था | दिल्ली के सिंहासन पर अकबर बैठे हुए थे | साथ ही देश के अनेकों भूभाग पर मुस्लिम शाषकों का अधिकार था | देश की जनता की बेजां तौर पर लूट हो रही थी, धार्मिक स्थलों की तोड़फोड़, सांस्कृतिक व शैक्षणिक धरोहरों की विनाशलीला चरम पर थी | हिन्दुओं पर अन्याय अत्याचार चरमसीमा पर था | उद्योगधंधे, व्यापार तहस नहस हो चूका था |

गोस्वामी जी ने अपनी भक्ति की शक्ति से लीला दिखाने का निश्चय किया और भगवान श्री कृष्ण के मंदिर में पूजा अर्चना करने बैठे और विराजमान भगवान श्री कृष्ण से प्रार्थना की –

कहाँ कहों छवि आपकी भले विराजे नाथ |
तुलसी मस्तक तब नबें, धनुष बाण लेऊ हाथ ||

इतिहास साक्षी है और जो घटना घटी उसको सैकड़ों भक्तों ने अपनी आँखों से देखा और उसका निम्न प्रकार वर्णन किया –

कित मुरली, कित चन्द्रिका, कित गोपिन को साथ |
अपने जन के कारने, श्री कृष्ण भये रघुनाथ ||

अर्थात श्री कृष्ण की मूर्ति धनुषधारी श्री राम में परिवर्तित हो गयी | अनेकों विद्वान, लेखक, कथाकार इस घटना को भक्त और भगवन के मध्य प्रेम तथा भक्ति की शक्ति के रूप में वर्णित करते हैं | जिसका आशय यह निकाला जाता है कि गोस्वामी जी श्री राम के अनन्य भक्त थे और उन्होंने श्री कृष्ण की मूर्ति के समक्ष शीश नावाने से मना कर दिया और अपनी भक्ति के बल पर श्री कृष्ण की मूर्ति को धनुषधारी रघुनाथ जी का रूप धारण करने को विवश कर दिया |

परन्तु इसका गहराई से चिंतन करें तो ज्ञात होगा कि गोस्वामी तुलसीदास जी बहुत बड़े विद्वान थे | लगभग पचहत्तर वर्ष कि आयु में उन्होंने रामचरित मानस की रचना शुरू की | साक्षात हनुमान जी प्रकट होकर उनकी सहायता करने आते थे जिन्हें गोस्वामी जी ने ही अपनी भक्ति से ऐसा करने को राजी किया था | गोस्वामी जी ने स्वयं प्रभु श्री राम को श्री हरि विष्णु व सीता जी को माता लक्ष्मी का अवतार वर्णित किया | वे यह भी जानते और मानते थे कि श्री कृष्ण जी भी श्री हरि विष्णु के अवतार हैं | इतना बड़ा भक्त व श्रेष्ठ विद्वान यह कैसे कह सकता है कि वह श्री कृष्ण की मूर्ति के समक्ष शीश नहीं नवायेगा ?

गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपनी भक्ति की शक्ति से लीला दिखाई और पूरे भारतीय जनमानस व युवा शक्ति को यही सन्देश देने का प्रयास किया कि यह समय श्री कृष्ण की बाल लीलाओं और रासलीलाओं में डूबने का नहीं है बल्कि श्री राम का अनुसरण करने का है, जब उन्होंने राक्षसों का वध करके सम्पूर्ण भूमि को असुर विहीन करने का निर्णय लिया, राजपाट त्याग कर वनगमन किया, आमजन – वानर, रिक्ष – भालू  आदि का संगठन किया और पृथ्वी को राक्षसों के अत्याचार से मुक्त किया | इसी तरह युवा शक्ति को श्री राम का अनुसरण करना चाहिए तथा विद्वानों को विश्वामित्र आदि ऋषि मुनियों जैसी भूमिका का निर्वाह करना चाहिए |

गोस्वामी तुलसीदास जी की इस लीला का यही रहस्य है जो आज भी सार्थक है |

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Om Prakash Shrivastava
Om Prakash Shrivastavahttp://www.sarthakchintan.com
M.A., L.L.B., Advocate, Notary Public Lalitpur (U.P.). He has interest in social service since his student life. He was active in student politics. He was arrested and sent to Jail for 1 month and 10 days for giving a speech in Lucknow University against the cancellation of recognition of Students Unions in India. He was president of Student Union of Bundelkhand College Jhansi (U.P.). He was in jail for 21 days for his participation in J.P. movement before emergency. He leaded a student group for a protest against emergency in India and was in jail for 5 months and 21 days in D.I.R. in Jhansi (U.P.) for this. That’s why U.P. Government has declared him ‘Loktantra Senani’. He is a National Executive Member of 'Loktantra Rakshak Senani Mahasangh'. He is Convener of ‘Lok Jagrati Manch’ and ‘Sarthakchintan.com’. He is an active member of BJP. His many articles have been published in different newspapers.
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