आज भी मंत्री, विधायक सांसदों एवं अन्य महत्वपूर्ण पदों पर रहने वाले व्यक्तियों को पद एवं गोपनीयता की शपथ लेनी पड़ती है | ये प्रथा आज से नहीं प्रारम्भ से ही चली आ रही है | प्रभु राम का अवतार रावण के वध के लिए हुआ था | रावण को मिले वरदान के अनुसार उसे कोई मनुष्य ही मार सकता था और इसीलिए भगवान विष्णु ने राम के रूप में मनुष्य अवतार लिया | अपने पूरे जीवन काल में भगवान राम स्वयं को मनुष्य ही बताते रहे और एक मनुष्य की ही भांति जीवन जिया | अयोध्या में रहकर रावण का वध नहीं किया जा सकता था इसीलिए उन का अयोध्या से बाहर जाना आवश्यक था | अपने अवतार के मूल कारण की गोपनीयता बनाये रखने के लिए उन को कुछ इस तरह से अयोध्या से बाहर जाना था जिस से कि ये न लगे कि वो रावण या किसी अन्य राछस के वध के लिए अवतरित हुए हैं और उसी उद्देश्य के लिए अयोध्या से बाहर जा रहे हैं | पारिवारिक कलह दिखा कर अयोध्या से बाहर जाना उसी योजना का एक हिस्सा था |
इस बारे में रामचरितमानस में लिखा गया है कि मंथरा के बार बार समझाने पर भी कैकयी राम के लिए वनवास और भरत के लिए राजतिलक का वर मांगने के लिए तैयार नहीं हुईं थीं | तब देवताओं ने सरस्वती जी से प्रार्थना की कि यदि भगवन राम वनवास के लिए नहीं गए तो उन के अवतार का उद्देश्य पूरा नहीं हो पायेगा | देवताओं की प्रार्थना स्वीकार कर सरस्वती जी ने कैकयी में मतिभ्रम पैदा किया और उन से ये दो वरदान मंगवाए |
कुछ अन्य विद्वानों ने इस कथा को इस प्रकार से कहा है कि मंथरा कैकयी के मायके में दासी थीं और कैकयी उन का माता के समान सम्मान करतीं थीं | ऋषि विश्वामित्र को रामावतार का सत्य पता था और भगवान राम और लक्ष्मण जी को अपने साथ ले जाकर उन से ताड़का का वध कराना भी उन की एक परीक्षा का हिस्सा था | ऋषि विश्वामित्र ने मंथरा को ये सब बात समझा कर कैकयी के पास भेजा था और उन को कैकयी को समझा कर ये दो वर मांगने के लिए उकसाने के लिए बोला था | किन्तु मंथरा के बार बार समझाने पर भी कैकयी इस बात के लिए तैयार नहीं हुईं तब भगवान राम ने स्वयं कैकयी से बात की और ये दो वर मांगने के लिए बोला.| इस पर कैकयी ने ये कह के मना कर दिया कि तुम्हारे पिता तुम्हारा जाने का दुःख बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे | तब देवताओं ने सरस्वती जी से प्रार्थना की और देवताओं की प्रार्थना स्वीकार कर सरस्वती जी ने कैकयी में मतिभ्रम पैदा किया और उन से ये दो वरदान मंगवाए |
भगवान राम अपने पूरे जीवन भर कैकयी को माता का आदर सम्मान देते रहे | शत्रुघ्न ने जब मंथरा को राम वनवास का कारण मानकर क्रोधित होकर लात मारी तो इस से मंथरा का कूबड़, जो कि उस के जीवन में अभिशाप कि भांति था, वो ठीक हो गया | वहीं भरत ने मंथरा का बचाव भी किया था | भगवान राम ने भी कभी मंथरा के प्रति किसी तरह का अनादर नहीं दिखाया |
इन तथ्यों से इस बात की पुष्टि भी होती है कि भगवान राम इस पूरी योजना का हिस्सा थे और शायद भरत को भी इस योजना का हिस्सा बनाया गया था |