Thursday, November 14, 2024
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राजनीति में आसुरी संस्कृति

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पं. दीन दयाल उपाध्याय जी के अनुसार भूख लगना प्रकृति है, छीनकर खाना विकृति है, बांटकर खाना संस्कृति है | व्यक्तिगत जीवन, पारिवारिक जीवन, समाज और देश सभी पर उपरोक्त कथन को लागू करें तो इसके बहुत व्यापक और गूढ़ अर्थ निकलेंगे | भूख लगना प्रकृति है इस कथन के पीछे परिवार सहित देश और देशवासियों की आवश्यकताओं का सहज संज्ञान लेने और यथार्थ को समझने की सीख दी गयी है | बांटकर खाना संस्कृति है अर्थात भारतीय संस्कृति जो एकात्म मानववाद का अनिवार्य अंग है | छीनकर खाना भारतीय संस्कृति और एकात्म मानववाद दोनों में निषिद्ध है क्योंकि यह आसुरी संस्कृति है | साम्य्वाद में तो इस आसुरी संस्कृति को ही व्यवस्था परिवर्तन का शस्त्र बताया गया |

भारत में मुग़ल आये तो इसी आसुरी संस्कृति के सहारे आये | उद्योग, व्यापार, तकनीकि, शिक्षा, संस्कृति सभी का विध्वंस किया और धन – सम्पदा इज़्ज़त आबरू सभी कुछ लूटा | अंग्रेजों ने यही सब बहुत ही सुनियोजित ढंग से किया | लेकिन पिछले बीस पच्चीस वर्षों में भारत की राजनीति में बड़ा परिवर्तन आया जिसमें मुग़ल काल की लूटपाट, छीना झपटी, जोर जबरदस्ती राजनीति का आवश्यक अंग बन गयी |

विकृत और आसुरी प्रवृत्ति के लोगों को बड़ी संख्या में सहयोगी और अनुयायी मिल जाते हैं क्योंकि दबंग नेता के साथ में रहने से तरह तरह से अवैधानिक कारोबार व लूटपाट को संरक्षण मिल जाता है | अनेकों प्रदेशों में धनबल व जातिबल के जरिये आसुरी व विकृत मानसिकता व प्रवृत्ति के लोग सत्ताधारी हुए और इसी तरह से लोग उनका वोट बैंक हैं | उ. प्र. की पिछली बसपा सरकार हो या वर्तमान सपा की सरकार हो पिछले बारह साल से उ. प्र. में इसी संस्कृति के लोगों की सरकार चल रही है |

परन्तु ठगों की भी एक संस्कृति है जिसमें ठगी, दलाली, कमीशन खोरी, ट्रांसफर पोस्टिंग का कारोबार, चुनावों में टिकटें बेचना, यहाँ तक कि पार्टी के पद बेचना शामिल है | बस इसमें एक संगठन समूह बनाना आवश्यक होता है | गिरगिट की तरह रंग बदलना, सत्तारूढ़ पार्टी में स्थान बनाना और फिर विधायक, सांसद, प्रदेश या केंद्र के मंत्री को घेरकर उसका विश्वासपात्र बनने की कला में पारंगत होना आवश्यक होता है | यह मारीच और कालनेमि की संस्कृति है | इस संस्कृति में अंग्रेज पारंगत थे परन्तु उनके कुछ सिद्धांत भी थे | परन्तु हमारे देश में जब से ठगी की इस राजनीति ने जोर पकड़ा यह सर्वव्यापी हो गयी | पं. दीनदयाल जी ने बांटकर खाने की संस्कृति पर बल दिया | वह तो देश और देश वासियों में बांटने की सीख दे गए परन्तु ठगों ने आपस में बांटने की संस्कृति बना ली | ठीक उसी तरह से जैसे जंगलों में वह शिकारी पशु जो झुण्ड में रहकर शिकार करते हैं और बांटकर खाते हैं तथा झुण्ड में जिनकी बड़ी हैसियत होती है उन्हें पहले तथा थोड़ा अधिक मिलता है | आज की राजनीति में यह संस्कृति बहुत लोकप्रिय है | यह बात अलग है कि बहुसंख्यक जनमानस इसका घोर विरोधी है तथा अवसर की टाक में रहता है और मौका मिलते ही सबक सिखाता है | दोनों प्रकार की आसुरी राजनैतिक संस्कृति निषिद्ध है तथा अस्थायी है | इस संस्कृति में जीने वालों को राजनीति में स्थान नहीं मिलना चाहिए | इनके लिए अन्य दूसरे बहुत से क्षेत्र हैं |

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Om Prakash Shrivastava
Om Prakash Shrivastavahttp://www.sarthakchintan.com
M.A., L.L.B., Advocate, Notary Public Lalitpur (U.P.). He has interest in social service since his student life. He was active in student politics. He was arrested and sent to Jail for 1 month and 10 days for giving a speech in Lucknow University against the cancellation of recognition of Students Unions in India. He was president of Student Union of Bundelkhand College Jhansi (U.P.). He was in jail for 21 days for his participation in J.P. movement before emergency. He leaded a student group for a protest against emergency in India and was in jail for 5 months and 21 days in D.I.R. in Jhansi (U.P.) for this. That’s why U.P. Government has declared him ‘Loktantra Senani’. He is a National Executive Member of 'Loktantra Rakshak Senani Mahasangh'. He is Convener of ‘Lok Jagrati Manch’ and ‘Sarthakchintan.com’. He is an active member of BJP. His many articles have been published in different newspapers.
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