Tuesday, December 3, 2024
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राजनीति में अपात्र व्यक्तियों का वर्चस्व

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अर्थशास्त्र में एक सिद्धांत है कि बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को प्रचलन से बाहर कर देती है | सीधा सा कारण है कि नए नए नोट लोग घर में रख लेते हैं तथा पुराने मलिन नोट बाज़ार में चलाते हैं | इस प्रकार अच्छी मुद्रा प्रचलन से बाहर रहती है | इसी प्रकार बुरे लोग अच्छे लोगों को राजनीति से बाहर कर देते हैं | राजनीति में साम, दाम, दंड, भेद की नीति का प्रयोग प्रचलित है | लोकतंत्र के वर्तमान कालखण्ड में धनबल एवं बाहुबल के कारण बहुत लोग राजनीति में वर्चस्व बनाने में सफल हो रहे हैं | धनबल व बाहुबल जुटाने के लिए अच्छा व्यक्ति होना जरुरी नहीं है बल्कि अच्छे व्यक्ति इन दोनों मामलों में बुरे लोगों से जो अनुचित व अवैधानिक मांगों का प्रयोग करते हैं सदैव पिछड़ जाते हैं | कूटनीति, आडम्बर, नाटक, अवसरवादिता, झूठ के द्वारा जनता को भ्रमित करना तथा अपने जाल में फंसना अधिक सरल होता है | इसके विपरीत अच्छे लोग इस मार्ग पर चलना सही नहीं समझते जिस कारण अच्छे लोग राजनीति में अधिक सफल नहीं होते | राजतंत्र के युग में अच्छे लोगों के लिए अवसर अधिक होते थे लेकिन लोकतंत्र में विशेषकर भारत सहित एशिया के बहुत बड़े भूभाग में अच्छे लोगों का वर्चस्व असंभव तो नहीं परंतु कठिन अवश्य है एवं जो सफल हो जाते हैं उन्हें लंबी अवधि तक तक अपना स्थान बनाये रखना भी कठिन होता है | दूसरी ओर धर्म और सामाजिक असमानता के नाम पर भारत सहित विश्व के बड़े भूभाग में आतंक के माध्यम से आसुरी प्रवृत्ति के लोग बड़े बड़े संगठन बनाकर मानवता को तार तार कर रहे हैं | दुनिया के चौधरियों को अपने अपने स्वार्थ हैं जिसके चलते ऐसे संगठनों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सहायता व समर्थन भी मिलता रहता है |

चाणक्य के अनुसार राजनीति में भाग न लेने का सबसे बड़ा दण्ड यह है कि अयोग्य व्यक्ति आप पर शासन करने लगते हैं | चाणक्य की यह बात सर्वकालीन है | हमारा देश दीर्घकाल तक परतंत्र रहा | पहले अनेकों आक्रमणकारियों ने बार बार हमारे देश को लूटा | मुगलों ने हमारे देश पर शासन ही कायम हो गया और वे यहीं बस गये | लगातार लूट, अत्याचार व आतंक के द्वारा देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हुई | धर्म, संस्कृति, शिक्षा तथा सामाजिक संरचना सभी पर कुठाराघात हुआ | उस युग में भी स्वार्थी व अवसरवादी लोग सुखी व संपन्न रहे | जिन्होंने इस्लाम स्वीकार किया वह लुटने व प्रताड़ित होने से बचे भी और अपने ही लोगों को लूटने व प्रताड़ित करने में मुगलों के सहयोगी बन गये | इसी प्रकार जिन राजाओं, नवाबों, जागीरदारों आदि ने अंग्रेजों से समझौता कर लिया उनके राजपाट व संपत्तियां बच गयीं | जिन्होंने अंग्रेजों को भाग्यविधाता मानकर उनके अधीन नौकरी कर ली वह भी खुश व सुखी रहे एवं शासक भी बन गये तथा अपनों पर ही जुल्म करने के आदि भी हो गये |

लेकिन दूसरा पहलू भी है | देश, धर्म, संस्कृति पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने और बलिदान वालों की भी कमीं नहीं रही | सन १८५७ की क्रांति तथा देश भक्ति के अनगिनत उदाहरण हमारे समक्ष हैं | उसके बाद भी क्रांतिकारियों के दल बनते रहे और देश के लिए बलिदानों की गाथाएं बनती गयीं | स्वामी विवेकानंद व दयानंद सरस्वती तथा आनंद मठ के संचालकों जैसी महान विभूतियाँ लोक जागरण का कार्य करती रहीं | कवि तथा अन्य साहित्यकार भी अपने तरीके से देश की स्वतंत्रता तथा संस्कृति की रक्षा का अभियान चलाते रहे | इसी बीच इनकी हवा निकालने के लिए एक संगठन अंग्रेजों द्वारा बनाया गया जिसका नाम कांग्रेस रखा गया | आजादी की लड़ाई का जोरदार प्रदर्शन हुआ, जनजागरण भी बहुत हुआ | गाँधी जी के अहिंसात्मक आन्दोलनों का जनजागरण में लाभ हुआ | इसके दो प्रकार के प्रभाव हुए | प्रथम तो यह कि हिंसात्मक आंदोलन अर्थात क्रांतिकारियों सशस्त्र क्रांति व्यापक तौर पर फैलाने में सफलता कम मिली, द्वितीय यह कि क्रांतिकारियों को शरण, आर्थिक सहायता, शास्त्र इत्यादि मिलते रहे तथा जन समर्थन भी मिलता रहा | इस दौर में चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सावरकर बंधु, सुभाष चंद्र बोस जैसे अनेकों क्रन्तिकारी पैदा हुए और अंग्रेजों को हिलाते रहे और बलिदान भी देते रहे | कांग्रेसियों ने अपने प्रभाव का इस्तमाल करते हुए प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सैनिकों को अंग्रेजों के पक्ष में युद्ध करने को तैयार कर किया और इसका आधार उस बतलाया कि प्रथम विश्व युद्ध के बाद अंग्रेज हमें आजादी दे देंगे परंतु यह झूठा सिद्ध हुआ | डेढ़ लाख से अधिक भारतीय सैनिक इस युद्ध में शहीद हुए | द्वितीय विश्वयुद्ध में फिर यही कहानी दुहरायी गयी फिर बहुत बड़ी संख्या में भारतीय सैनिक बलिदान हुए | इस युद्ध में ब्रिटिश हुकूमत बहुत कमजोर हो गयी तो अपने गुलाम देशों को आजाद करने को विवश हो गयी | भारत आजाद तो हुआ परंतु अंग्रेजों के मित्रों और सत्ता के लोभियों ने देश के कई टुकड़े करवा दिए फिर भी आजादी का श्रेय उन्हीं को मिला | भारत राजनैतिक रूप से आजाद हुआ परंतु आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक इत्यादि क्षेत्र में परतंत्रता बनी रही | लोकतान्त्रिक व्यवस्था के अन्तर्गत देश कि व्यवस्था चलने लगी |

परंतु लोकतंत्र का मुख्य आधार बहुमत है जिसमें उनन्चास विद्वानों पर इक्यावन मूर्ख तथा इसी प्रकार अच्छे लोगों पर बुरे लोग राज़ कर सकते हैं | राजनीति शास्त्र के विद्यार्थी होने के कारण छात्र जीवन में यह कहावत लगती थी परंतु वर्तमान में यह कहावत पूरी तरह से सत्य प्रमाणित हो रही है | चाणक्य कि माने तो इस में अच्छे लोगों का भी दोष है क्योंकि अच्छे लोग राजनीति तथा राजनैतिक व्यक्तियों कि मुखर होकर आलोचना तो करते हैं परंतु राजनीति को शुद्ध अर्थात साफ सुथरा करने का प्रयत्न नहीं करते | अच्छे लोगों को राजनीति में बढ़चढ़कर भागीदारी करना चाहिए तथा अच्छे तथा सुयोग्य लोगों को सहयोग भी करना चाहिए | किसी भी प्रकार कि बुराइयों में लिप्त लोगों को राजनीति से बाहर खदेड़ने का पूरी शक्ति के साथ प्रयत्न करना चाहिए | थोड़ा समय अवश्य लगेगा परंतु जैसे जैसे बुरे लोग राजनीति से बाहर होते जायेंगे वैसे वैसे आम लोगों के अच्छे दिन आते जायेंगे |

(फोटो साभार – www.teluguone.com )

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Om Prakash Shrivastava
Om Prakash Shrivastavahttp://www.sarthakchintan.com
M.A., L.L.B., Advocate, Notary Public Lalitpur (U.P.). He has interest in social service since his student life. He was active in student politics. He was arrested and sent to Jail for 1 month and 10 days for giving a speech in Lucknow University against the cancellation of recognition of Students Unions in India. He was president of Student Union of Bundelkhand College Jhansi (U.P.). He was in jail for 21 days for his participation in J.P. movement before emergency. He leaded a student group for a protest against emergency in India and was in jail for 5 months and 21 days in D.I.R. in Jhansi (U.P.) for this. That’s why U.P. Government has declared him ‘Loktantra Senani’. He is a National Executive Member of 'Loktantra Rakshak Senani Mahasangh'. He is Convener of ‘Lok Jagrati Manch’ and ‘Sarthakchintan.com’. He is an active member of BJP. His many articles have been published in different newspapers.
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