एक समय था जब राजनीति में अवसरवाद, दलबदल और धनबल हेय दृष्टि से देखे जाते थे | जातिवाद व जातीय समीकरण पर चुपके चुपके परदे के पीछे खेल चलता था | जनता के बीच सक्रियता, सेवा, पार्टी के प्रति निष्ठा, योग्यता, कर्मठता इत्यादि को मिलाकर जो व्यक्तित्व बनता था उसी का सर्वाधिक प्रभाव होता था | राजनीति में धन की आवश्यकता तो रहती थी परंतु नेता और पार्टी धनवानों की जेब में नहीं रहते थे बल्कि धनवान नेताओं के पीछे रहते थे | सन १९८० के बाद धीरे धीरे जो नई राजनीतिक संस्कृति आयी उसमें विचारधारा गौड़ होती गयी | धनबल, बाहुबल, जातिवाद, जातीय समीकरण प्रभावी होते गए |
इकीसवीं सदी में तो कमाल हो गया | जिन धनवान लोगों को अपने अवैध धंधों के लिए संरक्षण की आवश्यकता हैं वे राजनीति में आ जाते हैं और चुनाव से पहले जिस पार्टी की बढ़त दिखाई देती है उसमें शामिल होकर अपने धन का प्रदर्शन व नेताओं व प्रमुख कार्यकर्ताओं की सेवा करने लगते हैं | पार्टी में स्थान बनाने के लिए बाकायदा पार्टी के कार्यक्रमों पर एवं जिला से लेकर ऊपर तक जो प्रभावशाली लोग हैं उनकी धनसेवा शुरू कर देते हैं | जिनको विधानसभा, लोकसभा अथवा मिलते जुलते बड़े चुनाव लड़ना होते हैं वह तो धनवर्षा करते हैं और सफल होते हैं | ठीक पेइंग गेस्ट की तरह | बड़े शहरों में पेइंग गेस्ट की परंपरा पिछले कई वर्षों से चली आ रही है | आप किसी के मकान में बतौर किरायेदार रहिये, भोजन – जलपान का भी मासिक भुगतान मालिक लेता है और पेइंग गेस्ट शातिर है तो और भी खेल खेलता है | आजकल राजनीति में पेइंग गेस्ट परंपरा जोरो पर है | लोग हर चुनाव के पूर्व टूरिस्ट की तरह पार्टियां बदलते हैं और उन्हें दलबदलू नहीं कहा जाता बल्कि उनका सम्मान होता है कि उन्होंने पार्टी का जनाधार बढ़ा दिया, नए समीकरण बना दिए और धन की बारिश हो रही है | उस बारिश में पार्टी को भी चुनावी वर्ष में भारी आर्थिक सहायता मिल जाती है | साथ ही पार्टी के तमाम ठेकेदार भी अपना बैंक बैलेंस बनाने में सफल हो जाते हैं | सत्ता के आनंद के लालच में इन टूरिस्टों और पेइंग गेस्टों को बर्दाश्त ही नहीं किया जाता बल्कि जो कार्यकर्ता खून पसीना बहाकर पार्टी का आधार खड़ा करते हैं, अपने परिजनों के हितों से समझौता करके अर्थात कटौती करके पार्टी चलाने का काम करते हैं उन्हें मन मार कर रह जाना पड़ता है और टूरिस्ट व पेइंग गेस्ट मौज ही नहीं करते बल्कि निष्ठावान व कर्मठ कार्यकर्ताओं का अनेकानेक प्रकार से उपहास करते हैं |
परंतु कभी कभी पासा उल्टा पड़ जाता है | निष्ठावान कार्यकर्ता हताश और निराश होकर घर बैठ जाते हैं और परिणामस्वरूप सत्ता पार्टी के हाथ से फिसल जाती है | सत्ता हाथ से फिसलते ही पेइंग गेस्ट गायब हो जाते हैं | कुछ तत्काल टूरिस्ट बन जाते हैं अर्थात दूसरी पार्टी में चले जाते हैं और कुछ उचित अवसर की तलाश में रहते हैं |
ऐसा नहीं है कि नेता यह सब जानते नहीं हैं | वे सब कुछ जानते हैं और यह भी जानते हैं की पिछले कुछ अरसे से कार्यकर्ताओं के परिश्रम से पार्टी का ग्राफ बढ़ा है | अन्य पार्टियों से जनता नाराज़ है अथवा उन्हें विकल्प नहीं मानती है | इन सभी कारणों से पार्टी का माहौल बनता है परंतु उसे पुख्ता करने की इक्षा से इन टूरिस्टों और पेइंग गेस्टों पर भरोसा किया जाता है | लेकिन ध्यान देना चाहिए कि दोनों स्थितियों में क्षति पार्टी व लोकतंत्र की होती हैं | अच्छे लोग राजनैतिक पार्टियों और राजनीति से जिन कारणों से दूर होते जा रहे हैं उनमें से एक कारण यह भी है |
(फोटो साभार – caricaturecartoon.blogspot.com)