एक मुस्लिम महिला अचानक से न्यूज़ में आती है और एक हिन्दू पासपोर्ट अधिकारी पर उसके धर्म की वजह से दुर्व्यवहार करने और धर्मान्तरण के लिए दवाब डालने का आरोप लगाती है, फिर बिना जांच के ही सरकार द्वारा उस अधिकारी का तबादला कर दिया जाता है और उस महिला को कुछ ही समय में बिना किसी जांच के पासपोर्ट दे दिया जाता है | बाद में जब एक प्रत्यक्षदर्शी उस अधिकारी के समर्थन में बयान देता है और वह अधिकारी भी स्वयं मीडिया को बताता है कि विभिन्न डॉक्युमेंट्स में उस महिला के अलग अलग नाम होने की वजह से उस ने महिला से सही डॉक्यूमेंट देने को कहा था, तो लोग उस अधिकारी के समर्थन में सरकार का विरोध करते हैं तो फिर अचानक से उस अधिकारी का तबादला रोक दिया जाता है | अब पासपोर्ट के पुलिस वेरिफिकेशन में नयी बात यह सामने आ रही है कि उस महिला ने अपने एड्रेस का ब्यौरा भी गलत दिया था | हो सकता है अब कुछ जांच के बाद शायद उस महिला का पासपोर्ट गलत डिटेल्स देने की वजह से कैंसिल कर दिया जाये या उस से नए डॉक्युमेंट्स मांगे जाएं | लेकिन क्या सिर्फ पासपोर्ट कैंसिल कर देना उस महिला के लिए पर्याप्त सजा है ? आखिर जब मामले के प्रत्यक्षदर्शी बोल रहे हैं कि महिला झूठे आरोप लगा रही है तो फिर इस सब की अब तक जांच क्यों नहीं की गयी ? सरकार ने यह पता लगाने की कोशिश क्यों नहीं की कि उस महिला के आरोप सही हैं या गलत और अगर गलत हैं तो महिला पर अब तक कार्यवाही क्यों नहीं हुई और सही हैं तो सरकारी अधिकारी का तबादला क्यों रोका गया ? यदि उस महिला के आरोप गलत हैं तो झूठा बयान देकर एक ऑन ड्यूटी सरकारी अधिकारी की मानहानि करने, उसके खिलाफ आपराधिक साजिश करने, सरकार द्वारा निर्धारित सरकारी कामों में दखल देने, धार्मिक माहौल बिगाड़ने की साजिश करने आदि के केस क्यों नहीं रजिस्टर किये गए ? उस पासपोर्ट अधिकारी की इस सब में जो मानहानि हुई उसकी भरपाई कैसे होगी, उसे एवं उस के परिवार को जो अपमान सहना पड़ा उसकी भरपाई कौन करेगा ? उस शिक्षित महिला ने जो कुछ भी किया वो कोई मामूली अपराध नहीं है जिसे माफ़ कर दिया जाए, और वह शिक्षित है तो यह भी जाहिर है कि उसे यह बात अच्छे से पता है | यहाँ मैंने उस महिला एवं अधिकारी के धर्म का जिक्र इसलिए किया क्योंकि इस मामले का पूरा आधार धर्म को ही बनाया गया था |
हद यह है कि यह एकतरफा कार्यवाही उस सरकार में हुई जो कि छाती ठोक के दावे करती है कि वो तुष्टिकरण की राजनीति नहीं करती, उसके राज में हिन्दुओं के साथ अन्याय नहीं हो सकता | आखिर अगर अभी कांग्रेस की सरकार होती तो वो भी तो वही करती जो भाजपा सरकार में उस अधिकारी के साथ हुआ | तो फिर अलग क्या है ? आखिर हम क्यों माने कि यह हिन्दुओ की पार्टी है या हिन्दुओ के हित की सोच रखने वाली पार्टी है ? क्या इनको हिन्दुओं की याद सिर्फ चुनावों में आती है ? यदि ऐसा है तो क्यों हिन्दू इनको अगले चुनावों में वोट दें ?
यह पासपोर्ट का मुद्दा सिर्फ एक मामला नहीं है | इनके सरकार में रहते हुए हजारों रोहिंग्या मुसलमान जम्मू कश्मीर में जाकर बस गए लेकिन कश्मीरी पंडित आज तक नहीं बस पाए | अब अचानक से लोकसभा चुनाव के पहले सरकार गिरा देने से क्या इनकी यह गलती सुधर जाएगी ? रोहिंग्या मुसलमान कब वापस भेजे जायेंगे इस बात का कोई जवाब कब देगी सरकार ? पत्थरबाजों के केस वापस लेने की बात भी इन्ही की सरकार में हुई थी | अब चुनावी साल है तो अचानक से काफी बदलाव आएंगे और भाजपा वापस हिंदुत्व की बात करती पायी जाएगी परन्तु अब उनको इस बात का जवाब देना होगा कि पूर्ण बहुमत की सरकार में उन्होंने हिन्दुओं और हिंदुत्व के लिए क्या क्या किया | हालाँकि मैं यह मानता हूँ कि यह कहना गलत होगा कि इस सरकार ने इस दिशा में कुछ भी नहीं किया परन्तु पिछले कुछ समय से इनको सेकुलरिज्म का नशा कुछ इस तरह सवार है कि यह लोग यह तक भूल गए कि इनकी पार्टी की विचारधारा क्या थी | इस का नतीजा पिछले कुछ चुनावों में दिख भी चुका है | गुजरात जहाँ इन्हें १५० से ज्यादा सीटें पाना चाहिए था वह ये १०० भी पार नहीं कर पाए, कर्णाटक में कांग्रेस के ऐसे कुशासन के बाद कम से कम १३०-१४० सीट तो इनको आसानी से मिल जाती लेकिन जनता ने वहाँ भी इनको बहुमत से पीछे रोक दिया, कई उपचुनाव तो ये लगातार हार ही चुके हैं | उत्तर प्रदेश में तो मुख्यमंत्री एवं उपमुख्यमंत्री के गढ़ में भी चुनाव हार गए और कैराना जहाँ हिन्दू खुद पर हो रहे अत्याचारों की वजह से इनके साथ था वहाँ भी वोटिंग प्रतिशत गिर गया और यह लोग हार गए | उत्तर प्रदेश में महागठबंधन को भाजपा की हार का कारण बताया जा रहा है लेकिन उन सीटों पर जो वोटिंग प्रतिशत कम हो रहा है उस से भाजपा की चिंता बढ़नी चाहिए क्योंकि यह वोटिंग प्रतिशत विपक्ष के वोटरों के घर बैठने से नहीं गिरा है बल्कि भाजपा का वोटर घर बैठ रहा है | यदि ऐसे ही हिंदुत्व एवं मध्यम वर्ग वाला वोटिंग प्रतिशत लगातार गिरता गया तो २०१९ भाजपा के लिए २००४ साबित हो सकता है |
भाजपा को यह नहीं भूलना चाहिए कि चुनाव हर ५ साल में होते हैं | यदि भाजपा अब भी साफ नियत से अपने मूल मुद्दों पर वापस नहीं आती है तो नाराज लोगों का बड़ा प्रतिशत या तो घर बैठेगा या फिर विरोध में वोट डाल आएगा | कम वोट प्रतिशत और विपक्ष की एकजुटता का परिणाम २००४ से भी ज्यादा बुरा हो सकता है | २०१९ लोकसभा में २०० – २२० सीट पर यदि भाजपा की गाड़ी रुक गयी तो कोई बड़ी बात नहीं होगी अगर भाजपा सरकार ही न बना पाए, और फिलहाल तो उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि राज्यों से जिस तरह के समाचार आ रहे हैं अगर उनमें कोई बदलाव नहीं आया तो २००-२२० भी बहुत मुश्किल ही नजर आ रहा है | भाजपा को समझना होगा कि अब उनके पास समय कम है और काम बहुत ज्यादा | जितनी सावधानी और साफ नियत से वो आगे बढ़ेंगे उतना ही उनके लिए बेहतर है वरना हो सकता है कि कुछ ऐसे परिणाम आ जाएं कि बाद में सिर्फ पछतावा ही करने को बचे |