आजादी के बाद से ही लगातार कई सरकारों ने पाकिस्तान और अलगाववादियों से बातचीत की कोशिश की | नतीजा हर बार शून्य ही था और आगे भी शून्य ही रहेगा क्योंकि कुत्ते की पूँछ कट सकती है लेकिन कभी सीधी नहीं हो सकती | पाकिस्तान और अलगाववादी खत्म तो हो जायेंगे लेकिन सुधरेंगे नहीं | पाकिस्तान के पास तो अब वैसे भी खत्म होने के लिए ज्यादा कुछ बचा नहीं है, वहां उनके अपने पापों ने ही हर तरफ बर्बादी मचाई हुई है | अलगाववादी लोग पाकिस्तान के टुकड़ों पर पलने वाले आस्तीन के सांप हैं और पाकिस्तान से ज्यादा खतरा भारत को इन अलगाववादियों से है क्योंकि यही लोग हैं जो कश्मीर के बच्चों के दिमाग में बचपन से ही भारत के प्रति नफरत और पाकिस्तान के प्रति प्रेम की भावना भर देते हैं | बचपन से ही भारत के प्रति नफरत रखने वाले ऐसे बच्चे बड़े होकर कभी पत्थरबाज बनते हैं तो कभी आतंकवादी | आज कश्मीर में जो हालात हैं उस में बहुत बड़ा हाथ इन्ही अलगाववादियों का है |
आज नहीं तो कल पाकिस्तान से एक निर्णायक युद्ध तो करना ही होगा और पाकिस्तान को चार टुकड़ों में विभाजित करना ही होगा | बिना इस के पाकिस्तान जैसी बड़ी बीमारी का इलाज संभव नहीं है | हालाँकि इस से हमारी अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर होगा किन्तु उज्जवल और सुरक्षित भविष्य के लिए कुछ तो कुर्बानी आम जनता को भी देनी ही होगी, त्याग बलिदान सिर्फ सेना की जिम्मेदारी नहीं है | गिलगित बलूचिस्तान के लोग बहुत ही आशा से मोदी जी की तरफ देख रहे हैं क्योंकि शायद उनको भी लगता है कि मोदी जी आखिरी ऐसे नेता होंगे जो कि पाकिस्तान के साथ खुले युद्ध का एलान कर सकते हैं और बलूचिस्तान की आजादी में कोई मदद करेंगे | राजनीति का स्तर अब जिस तरह से हर एक पार्टी में लगातार गिरता जा रहा है उसको देखकर अब किसी दूसरे मोदी की उम्मीद बहुत कम ही है | हालाँकि योगी आदित्यनाथ जी के शुरुआती फैसलों को देखकर जनता को उनमें भी मोदी जी की झलक दिखाई देने लगी है लेकिन अभी योगी जी को बहुत लम्बा सफर तय करना है | यदि वो इस अग्निपरीक्षा में सफल हो जाते हैं तो फिर हमें मोदी जी के सन्यास के तुरंत बाद कुशल नेतृत्व का अभाव महसूस नहीं होगा |
ऐसे युद्ध कोई दो चार दिन की तैयारी से नहीं हो जाते | अब सबसे पहले तो विश्व स्तर पर भारत को इस हमले में क्या सहयोग और क्या विरोध मिलेगा उस बारे में बात करते हैं | इस दिशा में मोदी सरकार ने कदम उठाने काफी पहले ही शुरू कर दिए हैं | पहले मोदी जी ने अपने भाषण में बलूचिस्तान एवं पी. ओ. के. में पाकिस्तानी सेना द्वारा जनता के मानवाधिकार हनन एवं अत्याचार का मुद्दा उठाया | इस का बलूचिस्तान एवं पी. ओ. के. की जनता ने तो स्वागत किया ही साथ ही पाकिस्तान के सिंध प्रान्त ने भी पाकिस्तान से आजादी की मांग तेज कर दी | इन तीनो क्षेत्रों की जनता ने उस पर पाकिस्तानी सेना द्वारा किये जा रहे अत्याचारों के विरोध में खुलकर बड़े आंदोलन शुरू कर दिए और खुले आम मोदी जी से मांग की कि वो उनकी मदद करें | अब विश्व इस बात को नकार नहीं सकता कि इन क्षेत्रों की जनता भी पाकिस्तान से अलग होना चाहती है और भारत से मदद मांग रही है | पड़ौसी देशों जैसे कि बांग्लादेश, अफगानिस्तान आदि ने भी भारत का इस मुद्दे पर समर्थन किया | अमेरिका भी पाकिस्तान को झटका देते हुए भारत के साथ खड़ा है | चीन ने भी कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ देने से यह कहते हुए मना कर दिया है कि ये भारत एवं पाकिस्तान का आपस का मामला है और वो इस मुद्दे पर कुछ नहीं बोलेगा | यूरोपियन यूनियन ने भी पाकिस्तान को चेतावनी दे दी है कि यदि पाकिस्तान ने बलूचिस्तान में मानवाधिकारों का उल्लंघन बंद नहीं किया तो वो पाकिस्तान पर बड़े प्रतिबन्ध लगा देगा | भाजपा की राष्ट्रीय परिषद् की बैठक में मोदी जी ने पाकिस्तान की सारी जनता के बहाने गिलगित, बलूचिस्तान, पी. ओ. के. और सिंध की जनता को पाकिस्तान के हुक्मरानों के खिलाफ आवाज और तेज़ करने का इशारा कर दिया, अब यदि जनता ही देश से अलग होने की जोर शोर से मांग करे तो विश्व की बड़ी बड़ी ताकतें और संयुक्त राष्ट्र पाकिस्तान के अगले बंटवारे को रोक नहीं पाएंगे | सुषमा स्वराज जी ने भी कड़े शब्दों में भाषण देते हुए पाकिस्तान के खिलाफ माहौल बनाने की एक काफी अच्छी कोशिश की थी, इस कोशिश के परिणाम भी आने वाले समय में सामने आएंगे | ईरान और संयुक्त अरब अमीरात से भी भारत को समर्थन मिल रहा है | रूस भारत का पुराना सहयोगी है, हालाँकि पाकिस्तान के साथ बढ़ते हुए उस के रिश्ते कुछ शक जरूर पैदा करते हैं लेकिन इतना तय है कि बात यदि भारत और पाकिस्तान में से किसी एक को चुनने की हुई तो वो भारत को ही चुनेगा | कुल मिलकर अभी यही कहूंगा कि पाकिस्तान विरोधी माहौल बनाने के लिए मोदी सरकार सही दिशा में कड़ी मेहनत कर रही है और उसे लगातार सफलता भी मिल रही है | बस सरकार को थोड़ा और समय चाहिए विश्व को यह दिखाने का कि पाकिस्तान के चार टुकड़े करना सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि सारे विश्व के हित में होगा | यदि अमेरिका एवं उसके सहयोगी देश, रूस एवं यूरोपियन यूनियन ने खुलकर बलूचिस्तान के अलगाव पर भारत का समर्थन कर दिया तो चीन भी इन सब के दवाब में आकर इस पूरे मामले में चुप्पी साध लेगा क्योंकि वो पाकिस्तान के चक्कर में अपना कोई नुकसान नहीं कराएगा | और इस स्थिति में संयुक्त राष्ट्र यदि चाहे भी तब भी पाकिस्तान का साथ नहीं दे पायेगा क्योंकि सभी को पता है कि संयुक्त राष्ट्र आज भी इन सब कुछ बड़े देशों के हाथ की कठपुतली मात्र है |
अब बात करते हैं हमले के लिए सेना की तैयारी की | यह बहुत बड़ा हमला होगा क्योंकि छोटा मोटा हमला करके हम पाकिस्तान से सरेंडर तो करवा सकते हैं लेकिन उसे इस स्थिति में नहीं ला सकते कि वो अपने चार टुकड़े हो जाने दे | कब, कहाँ, किस तरह से और कितना बड़ा हमला किया जाये, हमारी कितनी तैयारी है और कितनी तैयारी की आवश्यकता है आदि मुद्दों पर विचार करने एवं मौजूदा तैयारी की समीक्षा करने में थोड़ा समय तो लगेगा ही | बांग्लादेश हमले के समय भी भारत ने कोई एक दिन या हफ्ते में युद्ध का फैसला करके हमला नहीं कर दिया था बल्कि इन सभी मुद्दों पर कुछ महीने ठीक से विचार करके एवं सेना को तैयारी के लिए पर्याप्त समय देकर हमला किया था, और पर्याप्त समय लेकर की गयी इस तैयारी एवं विचार विमर्श का परिणाम क्या हुआ था वो हमारा सुनहरा इतिहास है | इस बार हमला पहले से भी बड़ा और भयानक होगा इसीलिए तैयारी भी ज्यादा करनी है और उसके लिए समय भी चाहिए |
भारत के पाकिस्तान परस्त तथाकथित शांतिदूतों की तरह में यहाँ वो सब बातें नहीं करूँगा कि इस युद्ध से देश में महंगाई बढ़ेगी, विकास रुकेगा, इंसानियत की हत्या होगी क्योंकि मैं पाकिस्तान परस्त नहीं हूँ और साथ ही यह बात भी जानता हूँ कि इस देश की जनता देशभक्त है और इस हमले के जवाबी युद्ध के बाद यदि महंगाई बढ़ती है या विकास कार्यों में कुछ रुकावट आती है तो वो यह सब झेलने के लिए पूरी तरह तैयार है और पाकिस्तान के साथ इस बड़े युद्ध का समर्थन करती है |
मोदी सरकार ने अपनी कई नीतियों से यह संकेत दिए हैं कि वह पाकिस्तान से आर पार के युद्ध की तैयारियां करने में जुटी हुई है | मैं सरकार से यही अपील करूँगा कि जल्दी से इस दिशा में बड़ा फैसला लें, तैयारी पूरी करें और पाकिस्तान का हमेशा के लिए कोई इलाज कर दें | जब तक तैयारियां पूरी नहीं होतीं हैं तब तक तो बयानबाजी आदि करना ठीक है लेकिन तैयारी पूरी होने के बाद फिर न तो किसी तरह के विलम्ब का कोई मतलब नहीं है और न ही किसी तरह की अनावश्यक बयानबाजी का | सीधा आर पार का युद्ध ही एक विकल्प बचा है, इस युद्ध को कुछ दिन के लिए टाला जरूर जा सकता है परन्तु कभी न कभी तो यह युद्ध करना ही होगा |