“नव वर्ष के प्रथम दिन को लेकर अलग अलग धर्मों की मान्यता में मत भिन्नता है | वर्ष के प्रारम्भ के लिए ठोस वैज्ञानिक व व्यवहारिक तर्क आवश्यक है, केवल धार्मिक मत पर्याप्त नहीं |” – ओम प्रकाश श्रीवास्तव
वर्तमान समय में विश्व में अधिकांशतः व्यवहारिक रूप से जनवरी के प्रथम दिन को वर्ष का आरम्भ तथा अंतिम दिन को वर्ष की समाप्ति माना जाता है | और इसी आधार पर नव वर्ष मनाया जाता है | इस का आधार ईसाई धर्म के धर्म ग्रन्थ हैं | वैदिक संस्कृति के अनुसार चैत्र मास की वर्ष प्रतिवदा को वर्ष का प्रारम्भ और प्रथम दिन माना जाता है | सरकारी कार्यों के लिए फसली सन १ जुलाई से ३० जून तथा राजस्व वर्ष १ अप्रैल से ३१ मार्च तक माना जाता है | वर्षा के आरम्भ तथा फसलों के आधार पर फसली सन का कार्यकाल वैज्ञानिक एवं व्यवहारिक है | इसी प्रकार मार्च में मुख्य फसलें आती हैं जिनके आधार पर आय व्यय का अनुमान व बजट का निर्धारण करनें के लिए राजस्व वर्ष का कार्यकाल भी तार्किक व व्यवहारिक है | लकिन काल गणना के लिए वर्ष का प्रारम्भ किस दिन से हो यह बहुत महत्वपूर्ण विषय है | वर्ष के प्रारम्भ के लिए ठोस वैज्ञानिक व व्यवहारिक तर्क आवश्यक है, केवल धार्मिक मत पर्याप्त नहीं |
सर्व प्रथम ईसाई मत के अनुसार १ जनवरी को वर्ष के प्रारम्भ का दिन मानने का आधार देखते हैं – ऐसा क्या होता है इस दिन जो कुछ नया हो जाता है | ३ मौसम ६ ऋतुओं में कौन सा मौसम, ऋतू इस दिन प्रारम्भ होती है तो यही उत्तर होगा के कोई नहीं | फिर साल का नया दिन कैसा ? दूसरा आधार क्या यह स्रष्टि के प्रारम्भ का दिन है तो भी वही उत्तर की नहीं | तीसरा क्या यह ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईशा मसीह का जन्मदिन है तो वह भी नहीं | चौथा क्या यह ईसाई धर्म की स्थापना का पहला दिन है तो वो भी नहीं क्योंकि ईसाई धर्म ग्रन्थ ऐसा नहीं कहते | तो फिर काल गणना का प्रारंभिक दिन १ जनवरी कैसे हो सकता है | इसके समर्थन में कोई भी वैज्ञानिक तर्क नहीं है | १५ दिसम्बर से १५ जनवरी तक लगभग एक सा मौसम रहता है | कुछ भी नया नहीं होता | हाँ एक दिन दो कारणों से अवश्य हि महत्वपूर्ण हो जाता है वह है २५ दिसंबर | इस दिन ईसा मसीह का जन्म हुआ था और इस कारण ईसाइयों के लिए महत्वपूर्ण दिन है | दूसरा इस दिन से दिन थोड़ा थोड़ा बढ़ने लगता है | यदि ईशवी सन इस दिन से प्रारम्भ होता तो मान लेते की धार्मिक महत्व का दिन है, एक पैगम्बर के जन्म का दिन है और उनके सम्मान में इसी दिन को वर्ष का आरम्भ माना गया | कम से कम एक धार्मिक तर्क तो बन जाता परन्तु १ जनवरी के पीछे अब तक कोई तर्क या आधार नहीं दिया जा सका | यूरोप विशेषकर ब्रिटेन का वर्चस्व व शाषन दुनिया के कोने कोने में लम्बे समय तक रहा इस कारण से दुनिया में ईसवी वर्ष तथा १ जनवरी प्रथम दिन प्रचलित हो गया |
इस में तिथि परिवर्तन अर्थात दिवस प्रारम्भ होने का समय अर्ध रात्रि १२ बजे रखा गया | इसके समर्थन में तो कोई तर्क है ही नहीं | भारत में तथा वैदिक परंपरा में दिन का प्रारम्भ सूर्योदय के साथ होता है | ज्योतिष गणना के अनुसार सूर्योदय वर्ष के अलग अलग काल खण्ड में प्रातः साढ़े पांच से छेह बजे के मध्य होता है | इस समय यूरोप विशेषकर इंग्लैंड और उस के आसपास रात्रि के १२ बजे होते है | इस प्रकार तिथि का प्रारम्भ भारत तथा यूरोप विशेषकर इंग्लैंड में लगभग एक ही समय पर होता है | फर्क इतना है के वहां अर्ध रात्रि होती है और हमारे यहाँ सूर्योदय काल | वर्ष के दिन और काल गणना को लेकर पाश्चात्य विद्वानों ने बहुत बातें की, तर्क व सिद्धांत स्थापित किये परन्तु विवश होकर भारतीय काल गणना ही सर्वाधिक वैधानिक व श्रेष्ठ है | इसी कारण दिवस का प्रारम्भ भारतीय काल गणना के समय अर्थात सूर्योदय से मानी जाती है भले ही इंग्लैंड आदि देशों में उस समय अर्ध रात्रि क्यों ना हो |
वैदिक मत के अनुसार जिस दिन स्रष्टि का सृजन प्रारम्भ हुआ ठीक उसी समय स्रष्टि की काल गणना शुरू हो जाती है अर्थात जिस दिन ब्रह्मा जी ने स्रष्टि सृजन शुरू किया वहीँ से समय शुरू होता है अर्थात वर्ष का प्रथम दिन वही है | यह तथ्य ग्रंथों से स्पष्ट है की चैत्र मास की प्रतिपदा को ब्रह्मा जी ने स्रष्टि सृजन प्रारम्भ किया था | इसी कारण वैदिक परंपरा में जितने भी संवत्सर प्रारम्भ हुए वह चैत्रमास की प्रतिपदा से प्रारम्भ हुए और इसको वर्ष प्रतिपदा कहा जाने लगा | ब्रह्मा जी ने स्रष्टि का सृजन किया और कर रहे हैं | इस पर धार्मिक कारणों से विवाद किया जाता है, विभिन्न धर्मों के ग्रंथों में स्रष्टि के निर्माण का उल्लेख है की किसने और किस प्रकार किया | हमारे सनातन धर्म ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि भगवान विष्णु छीरसागर में सहत्र फन वाले अनंत नाग पर लेते हुए हैं | ब्रह्माण्ड कि रचना के पश्चात उनके मन में विश्व निर्माण की इच्छा हुई | सृजन का यह आरम्भ था, मंद मंद वायु बहने लगी, वातावरण में ओम, ओम की ध्वनि ग़ूंजने लगी जो भगवन विष्णु से निकल रही थी | विष्णु जी कि नाभि से निकले नाल समान कमल दंड पर चतुर्भुज ब्रह्मा प्रकट हुए | उनके हाथ में वेद थे और ब्रह्मा जी ने परमात्मा कि आज्ञा से परमात्मा कि निगरानी में स्रष्टि का कार्य प्रारम्भ किया | बाइबल में स्रष्टि निर्माण का वर्णन भी शुरुआत में किया गया | जिसके अनुसार ईश्वर ने आकाश और पृथ्वी (अर्थात ब्रह्माण्ड) का निर्माण किया, सर्वत्र अंधकार छाया था और शून्य अवस्था थी और भगवन की प्रतिमा जल के ऊपर बिराजमान थी | परमात्मा ने उजियाला किया | उजियाले और अंधकार को पृथक किया | उजियाले को दिन व अंधियारे को रात कहा | बीज, फल, फूल, पेड़, जलचर, नभचर, थलचर आदि बनाये फिर आदम को बनाया इत्यादि | यह वर्णन ठीक ठीक छीरसागर में लेटे विष्णु भगवान का ही वर्णन है | कुरान को भी स्रष्टि निर्माण का यही वर्णन स्वीकार है | बाइबल आरमाईक भाषा से ग्रीक, लैटिन आदि भाषा में अनुवादित होते होते यूरोपीय भाषाओँ में अनुवादित हुई जिसमें कई उल्लेख छोड़ दिए गए और कई बातें जोड़ दी गयीं | इस पर शोध करेंगे तो निश्चित तौर पर वैदिक परंपरा का और अधिक समर्थन होगा | बाइबल के न्यू टेस्टामेंट में उल्लेख है कि “इन द बिगनिंग वाज द वर्ड, एंड द वर्ड वाज विथ गॉड, एंड द वर्ड वाज गॉड” | अर्थात शुरुआत में एक ध्वनि (शब्द) निकला, वह शब्द ईश्वर का था और वह शब्द ही ईश्वर था | वैदिक ग्रंथों में भी यही वर्णन है कि जब विष्णु भगवन कि नाभि से कमल दल पर विराजमान ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए तो विष्णु भगवन के मुख से एक शब्द ओम निकला जो ब्रह्म का स्वरुप कहलाया | तात्पर्य यह कि स्रष्टि के आरम्भ व सृजन कि कथा सभी धर्मों में थोड़े बहुत अंतर से साथ लगभग एक जैसी है | स्रष्टि के आरम्भ के दिन से काल गणना करना अर्थात इस दिन से वर्ष का प्रारम्भ और नया दिन मानना ही सभी दृष्टि से उचित व सार्थक है |
चैत्रमास से ऋतू परिवर्तन होता है, शीतकाल का अंत तथा ग्रीष्म का प्रारम्भ होता है | मुख्य फसलों कि उपज प्राप्त होती है जिस आधार पर नागरिकों तथा शाषकों कि अर्थव्यवस्था का आधार बनता है | जीवन में नया पन हर तरफ दिखाई देता है | इस आधार पर भी चैत्रमास कि प्रतिपदा को नव वर्ष का आरम्भ व वर्ष का प्रथम दिन मानना उचित, तार्किक व वैज्ञानिक है | ब्रिटेन का परचम पूरी दुनियां में फहराया इस कारण उनके द्वारा प्रचलित ईश्वी सन तथा नव वर्ष दुनिया के कोने कोने में फेल गया | अन्य कोई नव वर्ष तथा संवत इतना प्रचलित नहीं हो सका | नयी ग्लोबल व्यवस्था में इसी कारण स्वीकार कर लिया गया, हालाँकि अलग अलग धर्मों व संस्कृति वाले देशों में उनके अपने सन तथा नव वर्ष प्रचलित हैं | हमारा देश भी ब्रिटिश उपनिवेश रहा, स्वाभाविक तौर पर उनके शाषन काल में उनकी व्यवस्था चलनी थी | आज़ादी के बाद भी अंग्रेजियत के मानसिक दास ब्रिटिश संस्कृति की नक़ल करके अपने आप को एडवांस व श्रेष्ठ मानते हैं | इसलिए १ जनवरी को नया साल मानने का प्रचलन दिनों दिन बड़ रहा है |
जो भी १ जनवरी को नया साल मानते हैं उस सभी को मेरी ओर से नव वर्ष मंगलमय हो | हार्दिक शुभकामनाएं |