आम तौर पर राज ठाकरे की पार्टी कुछ ऐसी मांगें लेकर सामने आती है जो कि इस देश की एकता एवं अखंडता को चोट ही पहुंचती हैं | उत्तर भारतीयों एवं अन्य गैर मराठियों का महाराष्ट्र में विरोध, उनके साथ मारपीट एवं अन्य अत्याचार, हिंदी भाषा का विरोध, मराठी एवं गैर-मराठियों के दिलों में आपस में भेदभाव एवं दुश्मनी पैदा करना आदि कई ऐसे काम हैं जो कि राज ठाकरे एवं उनकी पार्टी ने किये | देश में भाषा एवं पैतृक निवास के प्रदेश के आधार पर जनता में आपस में दुर्भावना पैदा करना इस देश की एकता एवं अखंडता पर सीधे तौर पर चोट पहुँचाना ही तो है | ये पूरी तरह से राष्ट्रवाद की भावना के विरुद्ध है | महाराष्ट्र की राजनीति में अब राज ठाकरे की स्थिति शून्य के बराबर ही है और महाराष्ट्र की जनता ने राज ठाकरे को इस शून्य पर पहुंच कर यह भी साबित कर दिया कि वो इनके विचारों का समर्थन भी नहीं करती है |
एक समय के हीरो से अब आज के जीरो बने राज ठाकरे के दिल में अचानक से राष्ट्रवाद पैदा हो गया है | इनको मुम्बई में अचानक से अब उत्तर भारतियों के साथ साथ पाकिस्तानी कलाकार भी पसंद नहीं आ रहे हैं | हालाँकि यहाँ मैं यह बात साफ़ कर दूं कि मैं पाकिस्तानी कलाकारों को भारत में काम दिए जाने का सख्त विरोधी हूँ | जो देश दिन रात हमारे विनाश के सपने देखता है उसके कलाकारों की कमाई करा कर हम कौन सा सन्देश दे रहे हैं ? कुछ लोग इसे शांति और अमन का सन्देश बोलते हैं लेकिन मेरी नजर में यह सिर्फ अपनी बेवकूफी और देशद्रोह का प्रदर्शन ही है | मैं राज ठाकरे की पार्टी की इस मांग का समर्थन करता हूँ लेकिन मेरा सवाल यह है कि इस पार्टी का यह राष्ट्रवाद तब कहाँ चला गया था जब ये लोग अपने ही देश में दूसरे प्रदेशों के लोगों पर अत्याचार कर रहे थे और इस देश की एकता और अखंडता पर हमला कर रहे थे | मेरी नजर में तो राज ठाकरे द्वारा की गयी यह मांग उनका राष्ट्रवाद नहीं बल्कि उनकी मौकापरस्ती दिखाती है |
अब बात करते हैं पाकिस्तानी कलाकारों के भारत में काम करने के मुद्दे पर | मुझे आज से नहीं बल्कि शुरू से ही यह बात समझ नहीं आती कि भारत में एक से बढ़कर एक इतने अच्छे कलाकारों के होते हुए भी ऐसी कौन सी मजबूरी है जो कि फिल्म इंडस्ट्री को पाकिस्तानी कलाकारों की जरूरत पड़ जाती है | हालाँकि यह बात किसी से छुपी नहीं है कि दाऊद इब्राहिम का अच्छा खासा पैसा बॉलीवुड में लगा हुआ है | एक तो दाऊद इब्राहिम के पैसों का असर और दूसरा कई फिल्म निर्माताओं की पाकिस्तान परस्ती, ये दोनों बातें मिलकर कई भारतीय फिल्म निर्माताओं एवं कलाकारों को पाकिस्तानी कलाकारों की तरफ आकर्षित करती हैं | मैं यही कहूंगा कि पाकिस्तानी कलाकारों के प्रति प्यार दिखाने वाले ऐसे सभी फिल्म निर्माताओं एवं कलाकारों का जमीर मर चुका है | साथ ही ऐसी फिल्में देखने वाले लोगों का भी जमीर मर चुका है | यदि जनता ऐसी फिल्में देखना बंद कर दे जिनमे किसी पाकिस्तानी कलाकार ने काम किया हुआ है तो ऐसे फिल्म निर्माता एवं कलाकार दुबारा किसी पाकिस्तानी कलाकार को मौका देने की हिम्मत नहीं कर पाएंगे |
क्या अब सरकार को ही ऐसी हर एक चीज पर प्रतिबन्ध लगाना पड़ेगा ? क्या जनता की खुद की कोई जिम्मेदारी नहीं है ? ऐसा ही कुछ चीनी सामानों के उपयोग के समय भी देखने मिलता है | ये मांग तो कई लोग करते दिख जायेंगे कि सरकार चीनी सामान पर प्रतिबन्ध क्यों नहीं लगा रही लेकिन खुद चीनी सामान का उपयोग करना बंद नहीं करेंगे | मैं बस जनता से यही कहूंगा कि इस समय सरकार पाकिस्तान को एक उचित जवाब देने की योजना बनाने में व्यस्त है | उस पर अतिरिक्त दवाब न बनाएं | अपनी जिम्मेदारी समझें और चीनी सामानों एवं पाकिस्तानी कलाकारों का खुल कर विरोध करें | न तो चीनी सामान का उपयोग करें और न ही पाकिस्तानी कलाकारों की फिल्में देखें |