२७ फ़रवरी २००२ में गोधरा में दंगाईयों ने साबरमती एक्सप्रेस में ५९ लोगों को जला कर मार दिया था | इस देश के कथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं, समाज सुधारकों एवं मीडिया के लोगों की गन्दी राजनीति में आज तक गोधरा कांड को चर्चाओं में वो स्थान नहीं मिल पाया जो कि गुजरात में हुए दंगों को मिला था | हमारे कथित धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदार गुजरात दंगों का जिक्र करने का आज भी कोई मौका नहीं छोड़ते हैं लेकिन गोधरा की बात करने का समय इन के पास नहीं है |
हम यहाँ किसी भी दंगे या हिंसा का समर्थन नहीं कर रहे हैं | दंगे किसी भी तरह से सही नहीं ठहराए जा सकते | लेकिन मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि गोधरा कांड में मारे गए लोगों के लिए न्याय मिलने में सब से बड़ी अड़चन हमारी कथित धर्मनिरपेक्ष राजनैतिक पार्टियां और मीडिया के लोग रहे हैं जिन्हें गुजरात दंगों पर राजनीति करने से आज तक फुरसत मिली ही नहीं |
आखिर क्या अपराध था गोधरा में मारे गए लोगों का और उन के परिवारों का ? क्यों उनको न्याय नहीं मिलना चाहिए था ? क्यों उन के हितों की लड़ाई के लिए हमारे कथित समाज सुधारक और कथित धर्मनिरपेक्ष नेता और मीडिया के लोग आगे नहीं आये आज तक ?
क्या सिर्फ यही एक कारण था कि इस में मरने वाले सिर्फ हिन्दू धर्म के लोग थे और हिन्दुओं के हितों की रक्षा करना एवं उन को न्याय दिलाने में सहायता करना इस देश की कथित धर्मनिरपेक्ष राजनीति की नियमावली में उचित नहीं समझा जाता है ?
इस देश में धर्म के नाम पर होने वाली राजनीति आज इतने निम्न स्तर पर आ चुकी है कि यदि कोई नेता कहीं हिन्दू धर्म की तारीफ कर दे या जय श्री राम या अन्य किसी हिन्दू धर्म के पूज्य भगवानों के नाम ले लें तो उन को तुरंत ही सांप्रदायिक कह दिया जाता है | नेता, समाज सुधारक, मीडिया सभी ऐसे पीछे पड़ जाते हैं जैसे कि किसी हिन्दू का दर्द बांटना आज एक गुनाह हो गया है इस देश में | “धर्म के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए” ये नियम हिन्दुओं की बात शुरू होते ही क्यों बदल दिया जाता है ?
मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि इस देश की जनता को धर्म के आधार पर बाँट दिया जाये | मैं ये कहना चाहता हूँ कि हिन्दुओं को भी न्याय मिलना चाहिए, नेताओं को हिन्दू धर्म के लोगों के भी हितों की रक्षा करनी चाहिए, हिन्दुओं की भी धार्मिक भावनाएं आहत नहीं होनी चाहिए |
में जानता हूँ कि इस देश के कथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं के पास हिन्दू हित की बात करना तो क्या सोचने तक का समय नहीं है | ये कथित धर्मनिरपेक्ष नेता, समाज सुधारक और मीडिया के लोग तो कभी नहीं सुधरेंगे | शायद जनता को इन की चाल समझ में आ जाये और वो इनकी बातों में आना बंद कर दे |