बिना किसी सबूत के आरोप लगाना अरविन्द केजरीवाल की पुरानी आदत है | पहले भी इन्हीं झूठे आरोपों के चलते इन पर कुछ मानहानि के केस हुए जिनमें इन की किरकिरी हुई | दिल्ली विधानसभा चुनाव के इनके पास एक दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ सबूतों की एक फाइल हुआ करती थी जो कि चुनाव जीतने के बाद शायद कहीं खो गयी है |
अब भाजपा सांसद महेश गिरी ने अरविन्द केजरीवाल द्वारा उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों पर खुली बहस की चुनौती दे दी | कई बार हमनें अरविन्द केजरीवाल को लोगों को ओपन डिबेट के लिए चुनोती देते देखा है | जिस तरह केजरीवाल आये दिन लोगों को खुली बहस के लिए चुनौती देते हैं उस लिहाज़ से तो उनको महेश गिरी कि यह चुनौती स्वीकार कर लेनी चाहिए थी | लेकिन अब तक केजरीवाल ने यह चुनौती स्वीकार नहीं की है | महेश गिरी फिलहाल केजरीवाल के घर के बाहर धरने पर बैठे हैं और मांग कर रहे हैं कि या तो केजरीवाल खुली बहस करें या फिर झूठे आरोपों के लिए माफ़ी मांगें |
खैर मुझे नहीं लगता कि केजरीवाल इस बहस के लिए हाँ करेंगे क्योंकि यदि उन के पास अपने इन आरोपों के कोई सबूत होते तो अब तक उनको सार्वजनिक करके रोज भाजपा एवं प्रधानमंत्री मोदी जी पर जुबानी हमला कर रहे होते |
शायद केजरीवाल को अब तक यह नहीं समझ आया है कि वो अब मुख्यमंत्री हैं | इस पद की एक गरिमा एवं जिम्मेदारी होती है | जिस तरह की भाषा का प्रयोग वो मोदी जी एवं भाजपा के अन्य कई नेताओं के लिए करते हैं वो इस पद की गरिमा के अनुसार नहीं है | उनके द्वारा कही गयी बात बहुत लोग पढ़ते व सुनते हैं |
मैं भाजपा सांसद महेश गिरी जी को यह सलाह दूंगा कि अपने इस धरने एवं विरोध प्रदर्शन के साथ ही उनको केजरीवाल के खिलाफ मानहानि का केस भी करना चाहिए | हालाँकि मैं इस मानहानि केस के बाद अरविन्द केजरीवाल से ऐसी कोई उम्मीद नहीं करता हूँ कि वो आगे से बिना सबूत के आरोप नहीं लगाएंगे | क्योंकि उन पर पहले से ही इसी तरह के मामलों में कई मानहानि के केस चल चुके हैं परन्तु उन्होंने आज भी अपनी बिना सबूत के आरोपों वाली राजनीति बंद नहीं की है |