Friday, March 14, 2025
HomeOtherPoetryकविता - बहता नीर सरित में जाता

कविता – बहता नीर सरित में जाता

- Advertisement -

बहता नीर सरित में जाता।
खूब उछल उत्पात मचाता।।
चंद्र चांदनी सा उज्जवल वो।
सब जीवो की प्यास बुझाता।।
देता धरती को जीवन वो।
सींच धरा को वन उपवन को।
नवजीवन के आस जगाता।।
बहता नीर सरित में जाता।।।
नील गगन में वायु बना उड़।
बदरा में सरगम सा घुल।
मंद मंद आप मुस्काता।।
सूरज के तेजोमय मुख को।
ढक खुद पर खूब इतराता।।
बूँद बन मेघ से गिरता।
फिर नील सरित हो जाता।।
वेग बड़ा उत्पति उसका।
जब रौद्र रूप धारण वो करता।।
पर्वत वृषक उपवन बेला हो।
महल खड़ा हो स्तम्भ गाड़ा हो।।
सब को अपने आँचल में लेता।
बहता नीर सरित हो जाता।।।

( फोटो साभार – http://www.myyatradiary.com)

- Advertisement -
RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular