Thursday, November 14, 2024
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दिशाहीन विपक्ष – योग्यता की जगह चापलूसी और मौकापरस्ती को वरीयता देने का नतीजा

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मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही लगभग हमेशा ही यही लगा कि विपक्ष पूरी तरह से दिशाहीन है | ऐसे कई छोटे बड़े मुद्दे थे जहाँ विपक्ष को अपनी ऊर्जा और समय खर्च नहीं करना था लेकिन किया गया और जहाँ खर्च करना चाहिए था वहां नहीं किया गया | वजह यही है कि योग्यता की जगह परिवारवाद और जातिवाद से इन पार्टियों के शीर्ष पर पहुंचे नेताओं को कौन उचित सलाह देगा | अयोग्य व्यक्ति जब भी उच्च स्थान पर पहुँचता है वो सबसे पहले योग्य व्यक्ति को बाहर करता है ताकि भविष्य में उसके स्थान के लिए कोई खतरा न हो | वही इन सभी पार्टियों में हुआ | योग्य नेताओं को या तो सीधा बाहर कर दिया गया या फिर उनका इतना अपमान किया गया कि परेशान होकर उन सभी योग्य व्यक्तियों ने या तो राजनीति छोड़ दी या पार्टी बदल ली | अब जो हैं उनमें ज्यादातर चापलूस, मौकापरस्त और अयोग्य व्यक्ति हैं और यदि कोई योग्य व्यक्ति है भी तो वो हताश निराश होकर घर बैठा हुआ है क्योंकि पार्टी में उसकी कोई इज्जत ही नहीं है | योग्य व्यक्तियों और योग्य नेतृत्व के अभाव में ये सभी पार्टियां आने वाले समय में और भी ज्यादा कमजोर ही होंगी |

मौजूदा विपक्ष को न तो यह समझ है कि किस मुद्दे को कब उठाना है, कितना कम या ज्यादा उठाना है और किन मुद्दों पर नपीतुली गंभीर प्रतिक्रिया देनी है और कहाँ चुप्पी साधकर सरकार की आलोचना करने से बचना है | वैसे तो ऐसे कई मौके आये जब विपक्ष ने दिशाहीन होने के सबूत दिए हैं लेकिन उन सभी को एक लेख में लिखूंगा तो बहुत ही बड़ा लेख हो जाएगा | बात को संक्षिप्त में कहने के लिए फिलहाल ऐसे पांच प्रमुख उदाहरण पर बात करते हैं |

१) सभी के अकाउंट में १५ लाख आने वाली बात |
जनता को अच्छे से पता है कि यह कहावत या तुलनात्मक बात कही गयी थी कि इतना काला धन है कि उस से सभी को १५-१५ लाख रुपये दिए जा सकते हैं | आमतौर पर बातचीत के बीच में कई बार ऐसे उदाहरण दिए जाते हैं | एक बार मैने कहीं पढ़ा था कि बिल गेट्स के पास इतना इतना धन है कि वो धरती से चाँद तक की सड़क कई बार बनवा दे | अब कोई मूर्ख ही होगा जो इस बात पर कुछ समय बाद पूछे कि भाई उस सड़क का क्या हुआ कब बनेगी | यहाँ विपक्ष ने ऐसे ही मूर्ख की भूमिका निभाई | इस जुमले पर मोदी सरकार को घेरने के लिए विपक्ष ने अनावश्यक ऊर्जा और समय खर्च किया और उसका कोई चुनावी फायदा भी नहीं हुआ |

२) पाकिस्तान की ओर से होने वाली गोलाबारी और सेना के जवानों पर होने वाले हमलों का मुद्दा |
यदि विपक्षी पार्टियां चाहतीं तो इस मुद्दे पर भाजपा को घेर सकतीं थीं | भाजपा नेता अपने ही दिए गए कई पुराने भाषणों की वजह से परेशान हो जाते | परन्तु यहाँ ऐसा लगा कि जैसे इस मुद्दे के लिए विपक्ष के पास न तो ज्यादा ऊर्जा है और न ही समय है | हद तो यह हो गयी कि जितनी ऊर्जा और समय विपक्ष ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरने में खर्च नहीं किया उस से कहीं ज्यादा सर्जिकल स्ट्राइक को फर्जी बताने में किया | कोई भी बुद्धिमान नेता उस समय अपनी अधिकतम ऊर्जा और समय केंद्र सरकार को पाकिस्तान की ओर से होने वाली गोलाबारी और सेना के जवानों पर होने वाले हमलों के मुद्दों पर घेरने में खर्च करता क्योंकि उस से वो मोदी सरकार की दिलेर और कड़े कदम लेने वाली छवि को चोट पहुंचा सकता था और ये नेता सर्जिकल स्ट्राइक पर बस सेना और सरकार को धन्यवाद कहकर चुप्पी साध लेता और कोशिश करता कि यह मुद्दा कम से कम उठे ताकि भाजपा को इसका ज्यादा चुनावी फायदा न मिले | परन्तु भाजपा से ज्यादा सर्जिकल स्ट्राइक का मुद्दा तो विपक्ष ने उठाया और ऐसा करके खुद की छवि पाकिस्तान परस्त बना डाली और भाजपा के वोट ही बढ़ाये |

३) जे. एन यू की देशद्रोही नारेबाजी |
जे. एन. यू. के वामपंथी छात्रों और शिक्षकों की सोच के बारे में पूरा देश जानता है | भारत विरोधी नारेबाजी के बाद यदि विपक्ष इन छात्रों के खिलाफ हुई कार्यवाही की मांग करता और बार बार यह सवाल उठाता कि जांच एजेन्सिया कब अपनी जांच पूरी करेंगी और कब सरकार दोषियों को सजा दिलवाएगी तो अपना नुकसान होने से बचा लेता | परन्तु सिर्फ केंद्र सरकार का अनावश्यक विरोध करने के लिए विपक्ष ने देशद्रोह के आरोपियों का समर्थन करके एक बार फिर अपनी छवि पाकिस्तान परस्त ही बना ली | वामपंथी पार्टियों से तो वैसे भी यहाँ यही उम्मीद थी परन्तु इस दौड़ में नितीश कुमार जैसे पुराने दिग्गज तक शामिल हो गए | अगर कुछ ज्यादा न कहकर वही राजनैतिक जुमला ही छोड़ दिया जाता कि “हम इसकी निंदा करते हैं और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की मांग करते हैं” तो भी विपक्ष को नुकसान नहीं बल्कि शायद फायदा ही होता | परन्तु यहाँ भी यही लगा कि विपक्ष को पता ही नहीं कि क्या करना है |

४) नोटबंदी
जनता शुरू से ही इस मुद्दे पर केंद्र सरकार के साथ थी | विपक्ष ने सारा समय नोटबंदी को हटाने की मांग में लगाया | हालाँकि वजह यही थी कि नोटबंदी की वजह से कई नेताओं को बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ था | लेकिन इतनी समझ तो विपक्ष में होनी चाहिए थी कि जिस कदम पर केंद्र सरकार को जनता का इतना ज्यादा समर्थन मिल रहा है उस को तो वो कभी वापस नहीं लेगी | जब पता ही है कि नोटबंदी वापस नहीं होने वाली तो अपना ध्यान उस दिशा में लगाते कि सरकार से यह पुछा जाए कि इस से कितना काला धन वापस आया, कुल कितना सरकारी धन इस कदम पर खर्च किया गया और कितना कुल फायदा सरकारी खजाने को हुआ. कितना भ्रष्टाचार रुका, कितना आतंकवाद रुका आदि ऐसे कई सवाल थे जिन पर केंद्र सरकार से पूछा जाता तो लगता कि विपक्ष सही दिशा में बहस करना चाहता है | परन्तु कभी विपक्ष ने इसे जनता को परेशान करने वाला कदम बताया तो कभी नोटबंदी को ही बड़ा घोटाला ही बोल दिया और कुछ नेताओं ने इसे धार्मिक रंग तक दे डाला | नितीश कुमार ने जिस तरह की प्रतिक्रिया दी थी कुछ उसी तरह की प्रतिक्रिया यदि बाकी विपक्ष की भी होती तो यहाँ विपक्ष को चुनावी नुकसान कम होता |

५) मुस्लिम तुष्टिकरण और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिन्दू विरोध
इस देश में ज्यादातर ऐसा समय रहा जबकि हिन्दुओं में एकता नहीं रही | यही वजह थी कि इतना बड़ा देश इतने लम्बे समय तक गुलाम रहा | इस मामले में आजादी के बाद भी कोई परिवर्तन नहीं आया | भाजपा ने कई बार हिन्दुओं को एक करके एक बड़ा वोट बनाने की कोशिश की लेकिन भाजपा की अपनी ही गलतियों की वजह से ९० के दशक का अंत आते आते हिंदुत्व के मुद्दे पर वोट मिलने लगभग बंद ही हो गए थे और राजनीति में जातियां हावी हो गयीं | परन्तु भाजपा विरोधी पार्टियों द्वारा मुस्लिम तुष्टिकरण और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर किये जा रहे हिन्दू विरोध और मोदी जी की कट्टर हिन्दू वाली छवि की वजह से यह हिंदुत्व का मुद्दा २०१४ के लोकसभा चुनावों में एक बार फिर जागा और पिछली बार से कहीं ज्यादा असर और ताकत के साथ वापस आया | मैं उत्तर प्रदेश से हूँ तो जनता हूँ कि उत्तर प्रदेश ने लोकसभा और फिर विधानसभा में भाजपा को ये बड़ी जीत विकास से ज्यादा हिंदुत्व के नाम पर दी थी | सेक्युलर पार्टियां पहले भी सेकुलरिज्म के नाम पर मुस्लिम तुष्टिकरण ही करती थीं परन्तु हिन्दू विरोध एक सीमा से ज्यादा नहीं किया जाता था और उनको उसका फायदा यह होता था कि मुसलमान वोट इनको एक होकर मिल जाता था और हिन्दू वोट वो जातियों में तोड़कर ले लेते थे | परन्तु अब इनके हिन्दू विरोध ने सारी सीमाएं ही पार कर दीं हैं, इनको अब हिन्दुओं के हर एक त्यौहार रीति-रिवाज से लेकर मंदिर के घंटों तक पर आपत्ति होने लगी है | हर बात में हिन्दुओं का विरोध वो भी ऐसे देश में जहाँ आज भी हिन्दू बहुसंख्यक है | इसे मैं बस मूर्खता ही कहूंगा | इस मूर्खता का फायदा भाजपा को यह मिला कि वो हिन्दुओं के एक बड़े प्रतिशत को एक करने में सफल रही और साथ ही मोदी जी की वजह से इसने अपनी सवर्णों की पार्टी वाली छवि भी बदल ली |

योग्य नेतृत्व और योग्य कार्यकर्ता के अभाव में आने वाले समय में विपक्षी पार्टियों की और भी ज्यादा दुर्दशा ही होनी है | भाजपा को भी विपक्ष की इस दुर्दशा से सीख लेनी चाहिए क्योंकि कई मौकों पर अब भाजपा में भी मौकापरस्तों और जातीय समीकरण के आधार पर नेता बने अयोग्य लोगों को योग्य नेताओं से ज्यादा सम्मान और पद दिए जा रहे हैं | दूसरी पार्टियों से आये कई मौकापरस्तों को आते ही बड़े पद और चुनावी टिकट दे दी जातीं हैं, मंत्री बना दिया जाता है | विपक्षी पार्टियों की दुर्दशा से सीखने की जगह भाजपा भी धीरे धीरे उनकी बुराइयों को अपनाती जा रही है | इन बुराइयों से शुरुआत में तो वैसे ही अच्छे चुनावी परिणाम आते हैं जैसे इन विपक्षी पार्टियों को आते थे परन्तु धीरे धीरे पार्टी अपने विनाश की ओर बढ़ती है | यदि भाजपा नहीं सुधरी तो आने वाले कुछ साल बाद ऐसे ही कुछ हश्र भाजपा का भी हो सकता है |

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Varun Shrivastava
Varun Shrivastavahttp://www.sarthakchintan.com
He is a founder member and a writer in SarthakChintan.com.
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