५ राज्यों में चुनावों के नतीजे सामने आ गए | एक तरफ जहाँ ये नतीजे कांग्रेस मुक्त भारत की ओर देश का एक और कदम दिखाई देते हैं तो वहीँ दूसरी ओर भाजपा को असम में मिली भारी जीत एवं अन्य राज्यों में भाजपा का बढ़ता जनाधार अगले लोकसभा चुनाव तक कई नए समीकरणों की ओर इशारा करते दिखाई देते हैं |
फिलहाल भाजपा सदस्य एवं समर्थक इन नतीजों से काफी खुश और संतुष्ट होंगे और वहीँ कांग्रेस के सदस्यों एवं समर्थकों को चिंतित होना चाहिए | लेकिन जिस तरह के बयान कुछ कांग्रेसी नेताओं ने दिए हैं उस में अभी भी अहंकार दिखाई दे रहा है | अभी भी कई कांग्रेसी नेता इसे कांग्रेस की हार मानने को तैयार नहीं हैं और साथ ही वो अभी भी यही साबित करने में जुटे हैं कि इस सभी हारों का नेहरू-गांधी परिवार से कुछ लेना देना नहीं है |
हालाँकि होना यह चाहिए था कि इन लगातार मिल रही हारों से कांग्रेस आत्मचिंतन करती और अपने शीर्ष नेतृत्व में आवश्यक बदलाव करती | लेकिन न तो इन हारों के लिए नेहरू-गांधी परिवार को जिम्मेदार ठहरने का साहस किसी कांग्रेसी नेता में है और न ही राहुल गांधी को हटाकर किसी और व्यक्ति को नेतृत्व देने की मांग करने का |
कांग्रेस के नेताओं को शायद अब तक यह समझ नहीं आया है कि जिस तेज़ी से उनकी पार्टी का इस देश में सफाया हो रहा है यदि ऐसा ही होता रहा तो जल्दी ही कांग्रेस का कुछ इस तरह खात्मा होगा कि वहां से वापसी में शायद कई साल लग जाएं |
फिलहाल अभी के हालात में तो मुझे नहीं लगता कि राहुल गांधी कांग्रेस को इस ख़राब स्थिति से बाहर ला पाएंगे | कांग्रेस यदि वापसी चाहती तो उसे अपने शीर्ष नेतृत्व में बदलाव लाने ही होंगे | चाटुकार नेताओं की जगह गम्भीर और काबिल लोगों को पार्टी में आगे बढ़ने का मौका देना होगा | लेकिन कांग्रेस की कार्यप्रणाली, नीति, सोच सब कुछ सिर्फ नेहरू-गांधी परिवार तक ही सीमित है और इस वजह से मुझे अगले कुछ सालों तक कांग्रेस की स्थिति में कोई सुधार होते नहीं दिखाई दे रहा है | यदि ऐसे ही चलता रहा तो यह देश सच में जल्दी ही कांग्रेस मुक्त हो जायेगा |
फ़िलहाल भाजपा कांग्रेस मुक्त भारत की ओर देश के बड़े इस कदम से काफी खुश होगी और असम की इतनी बड़ी जीत के बाद अब नमो चाय पार्टी तो असम की चाय से ही हो रही होगी |