बिहार टॉपर मामला जैसे ही सामने आया इस पर काफी बहस हुई | आनन फानन में इस नक़ल व्यवस्था को चलाने वाले कुछ लोगों को एवं छात्रों को गिरफ्तार कर के प्रशासन ने अपनी तरफ से जिम्मेदारी पूरी कर दी |
पहले बात करते हैं ऐसे शिक्षण संस्थानों की एवं अन्य सम्बंधित अधिकारियों की | क्या इस तरह नक़ल सिर्फ एक ही स्कूल में हुई होगी ? क्या इस बात की जांच नहीं की जानी चाहिए कि और कितने स्कूल इस सब में शामिल हैं ? आखिर वो कौन बड़े लोग हैं जिन की शह पर इस तरह से स्कूल खुले आम नक़ल करा पाए ? सरकार के जांच अधिकारी परीक्षा के समय क्या कर रहे थे, उनको इस सब के बारे में पता नहीं था या फिर उनको उनका हिस्सा समय से पहुंचा दिया गया था ? कहीं इस गड़बड़ी के तार शिक्षा विभाग एवं शिक्षा मंत्रालय के किसी अधिकारी तक तो नहीं जुड़े हुए हैं ? इस सब की जांच कब होगी ?
इस नक़ल व्यवस्था के लिए जो भी रुपये इस को चलाने वाले ले रहे होंगे वो छात्रों ने अपनी जेब से तो भरे नहीं होंगे | जाहिर सी बात है कि यह पूरा लेन देन छात्रों के माता-पिता की जानकारी एवं सहमति से हुआ होगा | लेकिन इनके माता-पिता तो उम्र का एक वह पड़ाव पार कर चुके हैं जहाँ हम यह नहीं कह सकते कि इन्हें अपने अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं था या इन्हें यह नहीं पता था कि इस तरह के काम अपराध की श्रेणी में आते हैं |
मैं यहाँ यह तो नहीं कहूंगा कि इन छात्रों को किसी भी तरह की कोई सजा नहीं मिलनी चाहिए | मेरे ख्याल से इनको कुछ साल के लिए देश के किसी भी बोर्ड से एग्जाम देने की अनुमति न देना ही इनके लिए उचित सजा होगी | इस से आने वाले सालों में छात्रों में इस तरह अपना पूरा भविष्य अंधकारमय होने का डर रहेगा और वो शायद नक़ल करने की और ऐसी किसी योजना का हिस्सा बनने की हिम्मत न करें | एक बार जेल की सजा होने से उनको भविष्य में कई तरह की समस्यायों का सामना करने पड़ेगा और वो जेल से बाहर आने के बाद गलत राह पर भी आगे बढ़ सकते हैं | हालाँकि मैं यह बात सिर्फ नक़ल के अपराध लिए कह रहा रहा हूँ | बड़े अपराधों में जो भी सजा दी जानी चाहिए वो जरूर मिले मैं उनके खिलाफ नहीं हूँ |