अभी कुछ दिनों पहले खबर आई थी कि बिहार के नवादा में एक बस्ती में दलितों के १२५ घर जला दिए गए | इस खबर पर दलितों के कथित मसीहा नेता और पत्रकारों की ये चुप्पी कई सवाल पैदा करती है | रोहित वेमुला की आत्महत्या को दलितों के हक़ की लड़ाई से जोड़कर दिनरात राजनीति करने वाले नेता और पत्रकार आखिर क्यों इतना संकोच कर रहे हैं इस मुद्दे पर बोलने में ? क्या सिर्फ समस्या यह है कि इस मुद्दे पर वो कुछ खास लोगों को गालियां नहीं दे सकते इसीलिए ये चुप्पी छायी हुई है ? क्या मुद्दे सिर्फ तभी उठाये जायेंगे जब कि इन में भाजपा को घेरा जा सकता हो और यदि भाजपा कि जगह कोई और पार्टी निशाना बन रही हो तो चुप्पी रखी जाएगी ?
क्या ये गरीब दलित परिवार उतने जरुरी नहीं हैं जितना कि रोहित वेमुला था ? रोहित की मौत पर बिहार सरकार के कुछ नेताओं ने भी बड़ी बड़ी बातें की थी और भाजपा का विरोध किया था | कहाँ हैं अब वो बिहार के नेता ? क्यों अपनी पार्टी की सरकार होते हुए भी अब इन आग लगाने वालों पर कार्रवाही नहीं कर रहे और क्यों अब उनको ये कांड दलितों पर होने वाला अत्याचार नहीं लग रहा ?
खैर नेता तो नेता, हमारे पत्रकार लोग कहाँ हैं ? कन्हैया कुमार को कई दिनों तक दिन रात चैनल पर दिखने वाले लोगों के पास बिहार की इस खबर को दिखने के लिए थोड़ा सा भी समय नहीं मिल रहा | क्या केवल इसीलिए कि इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी जी नहीं बल्कि बिहार के मुखमंत्री नितीश कुमार जी फंस जायेंगे ?
ये लोग तो इस मुद्दे को उठाएंगे नहीं | लेकिन एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते ये हमारी जिम्मेदारी है कि हम सभी एक होकर इस मुद्दे की जांच और साथ ही दोषियों पर कड़ी कार्रवाही की मांग करें | इन गरीब परिवारों को भी न्याय मिलना चाहिए और कानून हाथ में लेने वाले सभी लोगों पर कार्रवाही होनी चाहिए फिर चाहे वो बिहार सरकार में शामिल किसी पार्टी के समर्थक ही क्यों न निकलें |