हिंदुत्ववादी राजनीति के इतिहास का जब भी कभी जिक्र होगा उसमें स्वर्गीय बालासाहेब का जिक्र न हो ऐसा नहीं हो सकता | ९० के दशक में हिंदुत्व के क्षेत्र में लाल कृष्ण अडवाणी जी एवं बालासाहेब ठाकरे जी दो शेर की तरह माने जाते थे | हालाँकि हिन्दुत्ववाद के आज कुछ ऐसे समर्थक भी हैं जिन्हें ९० के दशक का इतिहास नहीं पता और इसीलिए उनको यह नहीं पता कि इस देश की राजनीति में हिंदुत्व का मुद्दा था तो काफी समय से लेकिन उसको सम्मानजनक स्थान तक पहुँचाने और देश के हिन्दुओं को एक करने की दिशा में जो योगदान अडवाणी जी एवं बालासाहेब ठाकरे जी ने ९० के दशक में किया उसके लिए यह देश हमेशा इन दो नेताओं का ऋणी रहेगा | आज के नए समर्थकों को मैं बस संक्षेप में यही बता देता हूँ कि ९० के दशक में हिन्दुत्ववादियों के दिलों में अडवाणी जी और बालासाहेब जी का वैसा ही स्थान था जो २०१४ में मोदी जी के लिए था | उस समय आजकल की तरह प्रचार के लिए मीडिया, इंटरनेट, सोशल साइट्स, धन एवं अन्य माध्यम होते तो ९० के दशक में भी भाजपा-शिव सेना गठबंधन २०१४ जैसे पूर्ण बहुमत तक जरूर पहुँचता | इस देश में हिंदुत्व की राजनीति की बस दो ही पहचान थीं और वो थीं भाजपा एवं शिव सेना |
बालासाहेब भाजपा के नहीं थे परन्तु भाजपा नेताओं में उनका सम्मान वैसा ही था जैसा कि शिव सेना में था | बालासाहेब के समय हमेशा महाराष्ट्र की राजनीति में शिव सेना का और देश की राजनीति में भाजपा का बड़े भाई का स्थान रहा | परन्तु यह आवश्यक नहीं कि एक कुशल और योग्य नेता के बच्चे भी योग्य हों | वही शिव सेना के साथ हुआ | बालासाहेब के जाने के बाद शिव सेना लगभग दिशाहीन हो गयी है | उसका पहला नुकसान शिवसेना को महाराष्ट्र की राजनीति में बड़े भाई का स्थान खोकर उठाना पड़ा | उसके बाद से ही लगातार शिव सेना सत्ता में रहते हुए भी विपक्ष जैसी भूमिका में बैठी हुई है | सकारात्मक विरोध गलत नहीं है परन्तु सिर्फ इसलिए विरोध करना क्योंकि हमें विरोध करना है, यह मूर्खता ही साबित हुआ | महाराष्ट्र की जनता लगातार एक के बाद एक हुए लोकल चुनावों में भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी बनाती गयी और शिव सेना अपनी गलतियों से सीखने की जगह और भी ज्यादा बड़ी गलतियां करती गयी | आज शायद यह कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस और शिव सेना दोनों ही पार्टियां कुशल नेतृत्व के अकाल से जूझ रहीं हैं और दोनों का हाल भी एक सा ही होता जा रहा है | शिव सेना बची हुई है क्योंकि उसने अभी भी भाजपा का साथ पूरी तरह से नहीं छोड़ा है परन्तु यदि शिव सेना पूरी तरह से गठबंधन तोड़ के अलग हो गयी तो हो सकता है कि आगे जाकर उसे कांग्रेस जैसा नुकसान भी उठाना पड़ जाये | एक समय की कांग्रेस विरोधी एवं हिंदुत्ववादी पार्टी शिव सेना के नेता आजकल राहुल गाँधी की तारीफ करने से नहीं चूकते, इनको कभी कभी राहुल गाँधी मोदी जी से भी बेहतर नेता लगते हैं | देशद्रोही नारेबाजी के आरोपी कन्हैया कुमार को लेकर दिया गया उद्धव ठाकरे का बयान आपको याद ही होगा, बालासाहेब के समय किसी शिव सैनिक ने ऐसा किया होता तो उसको पार्टी के बाहर का रास्ता दिखा दिया गया होता | उद्धव ठाकरे पहले हार्दिक पटेल से मिले और अब ममता बेनर्जी से भी मिलने जा पहुंचे | हो सकता है कि अचानक कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस से बाद रहे इस प्रेम सम्बन्ध का परिणाम भविष्य का कोई भाजपा विरोधी राजनैतिक गठबंधन हो जाए | परन्तु हिंदुत्व से राजनीति के शिखर पर पहुंची शिव सेना क्या अब इस स्तर पर आ गयी है कि हिंदुत्व के विरोधियों की गोद में जाकर बैठ जाये ? क्या बालासाहेब इसकी स्वीकृति देते ?
इस देश में हिंदुत्व की राजनीति की बस दो ही पहचान थीं और वो थीं भाजपा एवं शिव सेना | यदि इसमें से एक यानी कि शिव सेना अपनी राजनैतिक दिशाहीनता के चलते हिंदुत्व को छोड़कर सेक्युलर जमात का हाथ पकड़ लेती है तो यह हिंदुत्ववादी राजनीति के लिए बहुत ही दुखद समाचार होगा | सेक्युलर सरकारों में हिन्दुओं पर जिस तरह आयेदिन अत्याचारों की खबरें आतीं रहती हैं उनको देखकर यह साफ़ है कि हिन्दुओं को इस समय एक संगठित हिंदुत्ववादी राजनैतिक मोर्चे की आवश्यकता है | शिव सेना का ऐसे समय में दिशाहीन होना अच्छे संकेत नहीं हैं | हालाँकि यहाँ कुछ गलती भाजपा की तरफ से भी है | शिव सेना ने जैसे ही दिशाहीनता में भाजपा विरोध शुरू किया तो उसका जवाब देने और शिव सेना को बैकफुट पर रखने के लिए भाजपा में भी कुछ सेक्युलर जमात के नेताओं को सर पर बैठा लिया | शरद पवार को चुनावी सभाओं में भ्रष्ट कहने वाले भाजपाइयों ने उनको चुनाव के बाद पद्मा विभूषण पुरुस्कार दे डाला | अब तो नारायण राणे भी भाजपा सरकार में मंत्री बनने वाले हैं | दोनों पार्टियां एक दुसरे को काबू में रखने या नीचा दिखाने के लिए जो भी कर रहीं हैं उससे नुकसान कुल मिलाकर हिन्दू एवं हिन्दुत्ववादियों का ही हो रहा है | हिन्दुत्ववादियों एवं हिन्दुओं के लिए बेहतर यही होगा कि ये दोनों पार्टियां आपसी मतभेद भुलाकर फिर से प्रेम के साथ रहे | यदि आवश्यकता हो तो भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को महाराष्ट्र में भाजपा एवं शिव सेना के बीच सुलह करवानी चाहिए एवं सम्बन्ध सुधारने चाहिए |