आजादी के बाद से अब तक कभी सड़क बनाने के लिए तो कभी किसी और सरकारी या विकास कार्य के लिए अब तक कई मंदिर तोड़े या हटाये जा चुके हैं | जहाँ तक मुझे पता है इन तोड़े हुए मंदिरों के बदले कभी कोई दूसरे स्थान पर सरकारी खर्चे से मंदिर भी नहीं बनाया गया, हो सकता है कुछ गिने-चुने मामलों में शायद कहीं कोई अपवाद मिल भी जाये पर ज्यादातर मामलों में मंदिर सिर्फ तोड़े गये बनाये नहीं गये | हालाँकि यह सब अब तक ज्यादातर सिर्फ हिन्दू मंदिरों के साथ ही हुआ, अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों को ज्यादातर ऐसे सरकारी कार्यों में छुआ नहीं जाता | अब तक की सेक्युलर सरकारें विकास के नाम पर इस सब का समर्थन भी करती आयीं हैं, स्वयं कांग्रेस की सरकारों में कितने मंदिर तोड़े गए होंगे उस की इन्हें गिनती भी याद नहीं होगी |
अब इसी तरह इलाहबाद में कुम्भ से जुड़े कार्यों के लिए नेहरू जी की एक मूर्ति को सिर्फ कुछ समय के लिए हटा दिया गया | हालाँकि सरकार ने यह भी साफ़ किया है कि यह मूर्ती बस कुछ समय के लिए हटाई गयी है और कार्यक्रम के बाद में इसे अपने स्थान पर वापस लगा दिया जायेगा | लेकिन अब तक मंदिरों के तोड़े जाने का समर्थन करने वाले कोंग्रेसियों को इस मूर्ति के हटाये जाने पर बुरा लग रहा है | नेहरू जी थे तो एक इंसान ही | जब सरकारी कार्यों के लिए भगवान की मूर्तियाँ और मंदिर तोड़े जा सकते हैं तो कुछ दिन के लिए एक इंसान की मूर्ती हटाने में क्या समस्या है ?
अब या तो कांग्रेस के लोग ये मान लें कि अब तक जो भी मंदिर सरकारी कार्यों के नाम पर इनकी सरकारों ने तोड़े हैं वो सरकारी कार्यों के लिए नहीं बल्कि इनके सेकुलरिज्म के लिए तोड़े गए थे या फिर नेहरू जी की मूर्ती के भी हटाये जाने का विरोध न करें |
कांग्रेस इस बिना मतलब के मुद्दे को जितनी ज्यादा हवा देगी उतना ही ज्यादा इस में उलझती जाएगी क्योंकि हिन्दू इस बात को कई साल से पूछते आ रहे हैं कि सिर्फ हमारे मंदिरों को सरकारी कार्यों का हवाला देकर क्यों तोड़ा जाता है | यदि कांग्रेस नेहरू जी की मूर्ति पर विवाद करेगी तो उसे यह भी जवाब देना होगा कि यदि इस तरह से मूर्तियों का हटाया जाना गलत है तो अब तक उस की सरकारों ने इतने मंदिर क्यों तोड़े और उनमें स्थापित हमारे आराध्यों की मूर्तियों को क्यों हटाया |