ये वो देश है जिस में किसी समय महिला के सम्मान की रक्षा के लिए महायुद्ध हुए थे | ये वो देश है जिस में महिलाओं को कभी सर्वोच्च स्थान दिया जाता था | सीता-राम, राधे-श्याम, गौरी-शंकर, लक्ष्मी-नारायण आदि जहाँ महिलाओं का नाम पुरुषों से पहले लिया जाता था, यह है असली भारतीय संस्कृति | लेकिन अब क्या हुआ ? शक्ति स्वरूपा नारी को अब अबला और भोग की वस्तु क्यों समझा जाने लगा ?
जो लोग नारी को अबला समझते हैं या सिर्फ भोग की वस्तु समझते हैं या फिर उन पर अत्याचार करते हैं वो तो घृणित मानसिकता के शिकार हैं ही लेकिन जो कायर लोग नारी पर हो रहे अत्याचार को मूक दर्शकों की तरह देख कर चुप्पी साध लेते हैं वो क्या हैं ? सिर्फ कायर ? नहीं, ये वही लोग हैं जिनकी वजह से आज सिर्फ १-२ लोगों में इतनी हिम्मत आ जाती हैं कि वो बीच बाजार किसी महिला के साथ अभद्र व्यवहार कर देते हैं, ये वही लोग हैं जिनकी वजह से आज खुले आम महिलाओं को विभिन्न तरह की प्रताड़ना सहनी पड़ रही हैं | ऐसा नहीं है कि इन मूक दर्शकों में इतना साहस नहीं है कि वो ऐसे घृणित कामों का विरोध न कर पाएं, बात सिर्फ जिम्मेदारी और नियत की है | यदि वीर से वीर व्यक्ति भी स्वार्थी हो जाये और सिर्फ अपने लिए युद्ध करने का विचार रखे तो वो भी ऐसे घृणित कामों को होता देखकर एक मूक दर्शक ही बना रहेगा | यही हाल है हमारे आज के समाज का | जब तक खुद पर न बीते तब तक विरोध में आवाज न उठाओ, यही गिरी हुई सोच आज कई असामाजिक गतिविधियों की जनक बनी हुई है और लोगों की यही सोच अपराधियों की हिम्मत बढाती है |
बेंगलोर में हुई एक अकेली महिला के साथ कई मूक दर्शकों की मौजूदगी में सिर्फ दो अपराधियों ने बदतमीजी की और मूक दर्शक चुपचाप खड़े तमाशा देखते रहे | हालाँकि हर बार की तरह इस बार भी बहुत बड़ी फेसबुकिया क्रांति चल रही है लेकिन क्या उस से समाज बदलेगा ? ऐसे मूक दर्शकों से यही कहूंगा कि आगे से यदि आपके सामने कभी ऐसा हो तो एक बार यह जरूर सोच लें कि यदि उस महिला की जगह कोई आपके परिवार की महिला हो और वहां सिर्फ आप जैसे कई मूक दर्शक खड़े हों तो क्या होगा | शायद यह सोचकर आप में उस महिला की मदद करने की हिम्मत और नियत आ जाये |
फोटो साभार – The Indian Express