मध्यम वर्ग पारम्परिक रूप से मुख्यतः भाजपा का ही समर्थक रहा है | जब जब मध्यम वर्ग ने चुनावों में रूचि ली और वोट किया तब तब भाजपा को फायदा हुआ | मोदी जी के नेतृत्व वाली इस नयी भाजपा ने शुरू से ही कांग्रेस और अन्य विरोधियों के पारम्परिक वोट यानि कि गरीब – पिछड़ा वर्ग को अपनी तरफ खींचने की कोशिश की, इसके लिए आकर्षक सरकारी योजनाओं वाले कई पुराने कांग्रेसी हथकंडे भी अपनाये और उस में काफी हद तक कामयाब भी हुए हैं | भाजपा सरकारों द्वारा आये दिन लायी जा रहीं नयी नयी योजनाएं इस वर्ग को बहुत पसंद भी आ रहीं हैं | मध्यम वर्ग को कांग्रेस की प्राथमिकता सूची में कभी स्थान नहीं मिला और लगता है कि यह नयी भाजपा नए वोटबैंक को अपनी ओर लाने की धुन में शायद इतनी खो गयी है कि उसने भी अपनी प्राथमिकता सूची पूरी तरह से कांग्रेस से ही उधार ले ली है और अब मध्यम वर्ग के लिए उसमें स्थान धीरे धीरे सीमित होता जा रहा है और शायद कुछ समय बाद स्थान खत्म भी हो जाये | इस अब के लिए काफी हद तक मध्यम वर्ग स्वयं भी जिम्मेदार है, बाकी सभी वर्ग लगभग हमेशा ही बढ़चढ़कर चुनावों में हिस्सा लेते हैं और वोट डालते हैं परन्तु मध्यम वर्ग की चुनाव में दिलचस्पी बदलती रहती है और कभी कम तो कभी ज्यादा हो जाती है |
मध्यम वर्ग का मतलब सिर्फ वो लोग नहीं हैं जो कि मासिक तनख्वाह वाली नौकरियां कर रहे हैं, मध्यम वर्ग में वो सभी लोग आते हैं जिनका आर्थिक स्तर उस सीमा में है अब आय का साधन कुछ भी हो और इसमें सभी जाति-धर्म के लोग हैं | अतः मध्यम वर्ग की गिनती उतनी कम नहीं है जितनी लोगों को लगती है | छोटा व्यापारी भी मध्यम वर्ग का ही है और भी अन्य कई कामों से जुड़े लोग इस सीमा में हैं | इस बारे में कोई संदेह नहीं कि गरीब-पिछड़ा वर्ग के लिए वर्तमान सरकार ने काफी अच्छी योजनाएं लायीं हैं और उनसे किसी कोई कोई समस्या नहीं है | परन्तु यह अब तक समझ से परे है कि अपने इस चुनावी बजट में भाजपा ने मध्यम वर्ग को अनदेखा क्यों किया | क्या अब मध्यम वर्ग के वोट किसी भी पार्टी को नहीं चाहिए या अब सभी पार्टियां समझ गयीं हैं कि मध्यम वर्ग खुश हो या नाराज इस से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि ज्यादा से ज्यादा ये लोग वोट देने नहीं जायेंगे | परन्तु भाजपा ने भी यदि यही मान लिया है तो आने वाले समय में इसका बड़ा नुकसान भाजपा को उठाना पड़ सकता है क्योंकि २०१४ में मध्यम वर्ग ने बढ़चढ़कर मोदी जी को समर्थन और वोट दिया था और यदि अब मध्यम वर्ग नाराज होकर वोट नहीं डालता है या फिर भाजपा के खिलाफ डाल देता है तो उसका परिणाम भाजपा के लिए काफी परेशानी में डाल सकता है |
विपक्ष फिलहाल २०१९ में भाजपा को हारने की स्थिति में नहीं लग रहा | परन्तु जिस तरह की खींचतान एन. डी. ए. में चल रही है उस से साफ है कि अब भाजपा के घटक दल भी यही चाहते हैं कि भाजपा कमजोर हो ताकि उसे अपने इशारों पर नचाया जा सके | यदि भाजपा २२० से कम सीट लाती है तो यह विपक्ष और एन. डी. ए. के घटक दल दोनों के लिए शुभ समाचार होगा | २२० सीट के साथ मोदी जी भी इस तरह के सख्त तेवर के साथ काम नहीं कर पाएंगे और यदि ऐसा होता है तो इसका नुकसान २०१९ के बाद वाले सभी चुनावों में दिखाई देने लगेगा क्योंकि जनता के बीच मोदी जी की इस छवि का एक मुख्य कारण विभिन्न मुद्दों पर उनके सख्त तेवर भी हैं और यह भी हो सकता है कि २०२४ के पहले तक विपक्ष अपनी खोयी हुई ताकत वापस पा ले | यदि विपक्ष ताकतवर होता है तो २०२४ का चुनाव गैर-भाजपाई सरकार को ही जन्म देगा | यदि मध्यम वर्ग २०१९ के चुनाव से दूरी बना लेता है या फिर भाजपा के खिलाफ वोट दे देता है तो यह संभव हो भी सकता है कि भाजपा २२० का आंकड़ा पार न कर पाए और यदि २०० भी पार न कर पाए तो फिर आगे सरकार बनाने का रास्ता भाजपा के लिए अत्यधिक कठिन है | और यह भाजपा के लिए तो किसी भी लिहाज से शुभ नहीं होगा |
बजट के बाद से मध्यम वर्ग में काफी रोष दिखाई दिया है | अब देखते हैं कि भाजपा इस संकेत को समझकर आगे मध्यम वर्ग का ख्याल रखने की कोशिश करती है या फिर कांग्रेस से उधार ली प्राथमिकता सूची पर ही आगे बढ़ती है | यदि मध्यम वर्ग की नाराजगी के साथ २०१९ का चुनाव हुआ तो परिणाम कुछ ऐसे भी हो सकते हैं जिनका कि अभी किसी को अंदाजा भी नहीं है |