गुजरात चुनाव के नतीजे आ चुके हैं | भाजपा की जीत के बाद भाजपा कार्यालयों में कई तरह से खुशी मनाई गयी | कांग्रेस खेमे में जश्न मनाने का कोई खास कारण तो नहीं था फिर भी कुछ खुशी और संतोष वहां भी होगा | यह खुशी और संतोष सिर्फ पिछली बार से बेहतर प्रदर्शन से नहीं है बल्कि गुजरात चुनावों से मिले एक नए आत्मविश्वाश से है | २०१४ के लोकसभा चुनावों के बाद से ही कांग्रेस को लगातार बड़ी हार मिल रहीं हैं, महत्वपूर्ण चुनावों में जो कहीं कुछ थोड़ा प्रदर्शन कर भी पायी तो सहयोगी पार्टियों की जूनियर रहकर कर पायी | भाजपा और कांग्रेस का आमने सामने का मुकाबला भाजपा के पक्ष में एकतरफा ही जाता रहा | हालाँकि पंजाब में कांग्रेस की जीत हुई लेकिन वहां उसका मुकाबला भाजपा से नहीं बल्कि अकाली दल से था, पंजाब में भाजपा अकेले फिलहाल कुछ नहीं है | यानि कि कुल मिलाकर कांग्रेस के पास खुद का कुछ खास नहीं बचा है और देश में कांग्रेस मुक्त भारत और कांग्रेस के दिशाहीन और शक्तिहीन होने की चर्चा जोरों पर है, कार्यकर्ता हताश निराश है | यदि ऐसी हालत ही रहे तो यदि २०१९ में कोई महागठबंधन बने भी तो उसमें कांग्रेस की भूमिका कुछ खास नहीं होने वाली है | यह तो हमेशा से ही साफ था कि सोनिया गाँधी के बाद पार्टी की कमान राहुल गाँधी को ही मिलनी है, अब उनकी अपरिपक्व नेता वाली छवि कार्यकर्ताओं की इस निराशा और हताशा को और बड़ा ही रही थी | वहीँ दूसरी ओर भाजपा कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद हैं, एक के बाद एक राज्य में भाजपा चुनाव जीत रही है और शानदार प्रदर्शन कर रही है |
गुजरात भाजपा का गढ़ कहा जाता है, वहां भाजपा पिछले २२ साल से सत्ता में है और मोदी जी स्वयं भी गुजरात से ही हैं | कांग्रेस इस समय केंद्र में भी नहीं है और गुजरात जैसे भाजपा के गढ़ में तो वैसे भी उम्मीद थी कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में भी कुछ खास उत्साह शायद न रहे | वहीँ लगातार सत्ता में रहने की वजह से भाजपा के पास सशक्त नेतृत्व और कार्यकर्ता हैं | हालाँकि भाजपा गुजरात चुनाव में १५० से ज्यादा सीट पाने का दावा कर जरूर रही थी लेकिन गुजरात से जो रिपोर्ट आ रहीं थी उनसे कभी लगा नहीं कि भाजपा यह आंकड़ा छू पायेगी | परन्तु इस बात की पूरी उम्मीद थी कि भाजपा अच्छा प्रदर्शन करेगी और आराम से चुनाव जीतेगी | परन्तु कांग्रेस ने कड़ी टक्कर देकर भाजपा सहित सभी राजनैतिक विश्लेषकों को भी चौंका दिया और भाजपा को ९९ सीट से संतोष करना पड़ा | यहाँ भाजपा २२ साल सत्ता में होने की वजह से जनता में थोड़ा बहुत असंतोष और जातीय समीकरण आदि के नाम पर अपने प्रदर्शन को मीडिया और जनता के सामने में अच्छा साबित कर जरूर रही है परन्तु भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को अंदाजा जरूर होगा कि गुजरात चुनाव के यह नतीजे आने वाले समय में भाजपा को परेशानी में डाल सकते हैं | इन नतीजों से कांग्रेस को यह आत्मविश्वास मिला है कि वो अभी के हालत में भी भाजपा को कड़ी टक्कर भी दे सकती है और यदि सही रणनीति के साथ चले तो भाजपा को उसके गढ़ कहे जाने वाले राज्यों में शायद हरा भी सकती है | इन नतीजों के आने के बाद कांग्रेस के कई नेता और समर्थक इस नए आत्मविश्वास से बहुत खुश हैं |
मैंने अपने पिछले लेख में लिखा था कि यदि कांग्रेस भाजपा को ९२ – १०५ सीट के बीच रोकने में कामयाब हो जाती है तो भाजपा के लिए अच्छा नहीं रहेगा | इस से विपक्ष के आत्मविश्वाश में काफी बढ़ोत्तरी होगी | २०१९ के लिए महागठबंधन जरूर बनेगा और इस में कई पार्टियाँ आ जाएँगी | हालाँकि हो सकता है कि यहाँ कुछ मजबूत क्षेत्रीय पार्टियाँ सीटों के समझौते और महागठबंधन के नेता पद यानि कि प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को लेकर होने वाले विवादों की वजह से महागठबंधन से दूरी बना लें | इस स्थिति में यदि विपक्ष २०१९ में भाजपा को चुनाव हरा नहीं पाए तो उस के लिए यही एक बड़ी जीत होगी कि वो किसी तरह भाजपा को २२० से कम सीट पर रोक दे | भाजपा की कई सहयोगी पार्टियाँ भी शायद इस दिन का इन्तजार कर रहीं हैं ताकि गठबंधन में उनका प्रभाव बड़े और वो भी भाजपा पर मनचाहे दबाव डाल पाएं | ऐसी स्थिति में भाजपा गठबंधन सरकार बना जरूर लेगा परन्तु मोदी जी उसे उस तरह से नहीं चला पाएंगे जैसे कि वो अभी चला रहे हैं और फिर सरकार में आये इन परिवर्तनों का प्रभाव २०१९ के बाद होने वाले राज्य चुनावों पर भी पड़ेगा | और इसका परिणाम यह होगा कि २०२४ तक विपक्ष को फिर से मजबूत होने का मौका मिलेगा और शायद विपक्ष की यह मजबूती २०२४ के चुनावों के परिणामों में गणित बदल भी दे और भाजपा को वापस विपक्ष में भेज दे |
यह तो मुझे नहीं पता कि भाजपा सच में गुजरात में १५० से ज्यादा सीट की उम्मीद कर रही थी या फिर यह विपक्ष को दबाव लाने के लिए कही गयी चुनावी बातें थीं, परन्तु यदि भाजपा सच में १५० सीट से ज्यादा की उम्मीद कर रही थी तो फिर यह भाजपा की चुनावी रणनीति और आंकलन की बहुत बड़ी असफलता है कि वो ऐसे राज्य में जनता का मन नहीं टटोल पायी जहाँ वो २२ साल से सत्ता में है, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को इस पर काम करना होगा | यदि भाजपा का यह प्रदर्शन किसी महागठबंधन के खिलाफ होता तो एक बार यह समझ सकते थे कि शायद विपक्ष की एकजुटता की वजह से भाजपा का ऐसा प्रदर्शन रहा परन्तु यहाँ सीधा मुकाबला निराशा से जूझ रही दिशाहीन कांग्रेस के साथ था और वो भी तब जब कि कांग्रेस के नेताओं ने फिर से कुछ ऐसी मूर्खताएं कर दीं जिन से कि उनकी पार्टी द्वारा की गयी मेहनत पर लगभग पानी भी फिरा, चाहे वो मणि शंकर अय्यर की मोदी जी पर नीच शब्द वाली टिप्पणी हो या फिर से कांग्रेसी नेताओं द्वारा पुनः चायवाला शब्द का प्रयोग या फिर अयोध्या के राम मंदिर केस की तारीख को लेकर कपिल सिब्बल की कोर्ट में दी गयी दलील | कांग्रेस पार्टी वैसे भी राहुल गाँधी कि छवि और अपरिपक्वता से जूझती ही रहती है और उसी पर इनके वरिष्ठ नेताओं द्वारा की गयीं ऐसी गलतियां भी नुकसान को बड़ातीं ही हैं |
गुजरात के नतीजों का भविष्य पर जो भी असर पड़ सकता है उसका अंदाजा भाजपा नेताओं को होगा ही | अब उनके लिए उचित यही होगा कि वो नतीजों की सही समीक्षा करें, अपनी गलतियों और कमियों को पहचानें और उन पर काम करें ताकि आने वाला समय भाजपा को कोई ऐसा झटका न दे दे जिसकी अभी फिलहाल कोई उम्मीद भी नहीं कर रहा | कार्यकर्ताओं और संगठन में यदि किसी तरह की नाराजगी या असंतोष है तो उसे दूर करें और २०१९ के पहले संगठन को उसी तरह से मजबूत और तैयार रखें जैसा कि २०१४ के समय में था | भाजपा को यह याद रखना चाहिए कि उसे सशक्त सरकार चलाने के लिए २०१९ में अपनी दम पर कम से कम २५० सीट लानी होंगी ताकि उसके सहयोगी उस पर अनुचित दवाब न डाल सकें लेकिन वहीँ विपक्ष को अपना भविष्य सही करने के लिए भाजपा को बस २२० से कम सीट पर रोकना है और कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष ऐसा करने के लिए सारे हथकंडे अपनाएगा |