जिस समय नरेंद्र मोदी जी को भाजपा ने अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार चुना उस समय तक वो मुख्य रूप से विकासवादी छवि के प्रतीक थे | परन्तु घमंड में डूबे कुछ बड़े कांग्रेस नेताओं ने उनके चायवाला होने के इतिहास का मजाक उदय और चायवाला एक अपमानजनक शब्द की तरह इस्तेमाल किया | यह कदम लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए आत्मघाती साबित हुआ क्योंकि इससे एक तो मोदी जी के गरीबी और संघर्ष का अपने आप प्रचार हुआ और दूसरा इस से देश का गरीब तबका इस तर्क के साथ मोदी जी के साथ आकर खड़ा हो गया कि सत्ता क्या सिर्फ अमीरों और बड़े परिवारों के लिए है, क्या गरीब परिवार में जन्मा व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री नहीं बन सकता | भाजपा ने इस मौके को छोड़ा नहीं और नमो टी पार्टी और अन्य कई तरीकों इस मुद्दे को जीवित रखा, मोदी जी ने भी खुद को कई बार चायवाला बताया और जनता के बीच साबित किया कि किस तरह वो संघर्ष करके और खुद को साबित करके आज एक गरीब पिछड़ा चायवाला देश का प्रधानमंत्री बनने वाला है | साथ ही भाजपा और कांग्रेस की सोच के अंतर की भी चर्चा हुई कि एक पार्टी ने एक गरीब चायवाले को पहले मुख्यमंत्री बनाया और फिर प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बना दिया वहीँ दूसरी पार्टी आज भी परिवारवादियों और पूंजीपतियों के महिमामंडन में और गरीब के उपहास और अपमान में व्यस्त है | इस सब का कांग्रेस को अच्छा खासा नुकसान और भाजपा को बहुत बड़ा फायदा हुआ |
कांग्रेस इस हद तक दिशाहीन हो चुकी है कि वो अपनी इस बड़ी गलती से सबक नहीं ले सकी और उसके नेताओं ने गुजरात के चुनाव के ठीक पहले फिर से खुद ही चायवाला शब्द का पुनः अपमान कर दिया और भाजपा को पुनः बैठे बिठाए यह मुद्दा दे दिया | भाजपा इस बार भी इस मुद्दे को पहले की भांति इस्तेमाल कर रही है और इसे गरीब के अपमान से जोड़कर फिर से जगह जगह चुनावी कार्यक्रमों में चाय पार्टी एवं अन्य तरीकों से विरोध प्रदर्शन कर रही है | जाहिर सी बात है कि गरीब तबके को कांग्रेस के इस घमंड से पुनः चोट पहुंची होगी और गरीब तबके में फिर से मोदी जी एक आदर्श की छवि बनाने में सफल रहेंगे | अब भाजपा किस हद तक इस मौके का फायदा उठा पायेगी यह तो आने वाले चुनावों के नतीजों में पता चल ही जायेगा |
कुशल नेतृत्व के अभाव में कांग्रेस एक के बाद एक गलतियां कर रही है और हद यह है कि उन गलतियों को सुधारने और सही मार्गदर्शन कर सके ऐसे नेता को चुनने की जगह वो आज भी परिवारभक्ति में व्यस्त है और अपनी सबसे बड़ी पोस्ट यानि कि पार्टी अध्यक्ष का पद राहुल गाँधी को देने वाली है | जिस रास्ते और रणनीति पर कांग्रेस चल रही है उसे देखकर लगता नहीं कि ये २०१९ में भी भाजपा को कोई खास चुनौती दे पाएंगे |